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    अमित की कुण्डलिया

    अमित की कुण्डलिया


    कविताई
    कविताई कैसे करूँ, करके मैं सायास।
    वर्ण वाक्य बस रूप है, काव्य हृदय आभास।।
    काव्य हृदय आभास, वही फिर कोमल कविता।
    अनायास उद्गार, भाव की स्वर्णिम सविता।।
    कहे अमित कविराज, विधा विधि बस ललिताई।
    लिखते सबल प्रयास, नहीं फिर वह कविताई।।

    कविता
    कवि तो कहता है वही, जो देखे है नैन।
    कागज पर कविता दिखे, लिखे वेदना चैन।।
    लिखे वेदना चैन, विरह की व्यथा विभावन।
    कभी प्रेम का पत्र, मिलन का राग सुहावन।।
    कहे अमित यह आज, लेखनी लिखता हर छवि।
    जो भी देखे नैन, वही तो लिखता है कवि।।

    रचना
    रचना कैसे नित लिखूँ, करके अथक प्रयास।
    अंतरमन संवेदना, आता है अनयास।।
    आता है अनयास, भाव की बहती सरिता।
    उर नवीन उद्गार, यही कहलाती कविता।।
    कहे अमित कविराज, कर्म कवि का कुछ पढ़ना।
    व्यर्थ सृजन है ढ़ेर, अमर करती इक रचना।।

    सर्जक- कन्हैया साहू 'अमित'
    शिक्षक- भाटापारा छत्तीसगढ़

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