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    कुपोषण निवारण

    "कुपोषण _निवारण"
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    जग मे व्याप्त कुपोषण की,
    स्थिति कर देती विचलित है।
    आठ अरब जनसंख्या मे से,
    अस्सी कोटि प्रभावित हैं।।

    तन मे, मन मे, बुद्धि_चित्त मे,
    पड़ी कुपोषण की छाया ।
    बुद्धि_भ्रमित,तन_कृश,मन_दूषित 
         चित्त सभी का बौराया।।

    चंद्र लोक से मंगल गृह तक,
    नभ मे मानव विचर रहा।
    किन्तु धरा मे कहीं_कहीं वह,
    भूख, प्यास से विफर रहा।।

    हो अनाज की कमी धरा में,
    है ऐसा परिदृष्य नही।।
    लेकिन पोषक तत्व सहित है,
    वितरण सामंजस्य नहीं।।

    साथ_साथ मे वायु प्रदूषित,
    अन्न अशुचि, जल मैला है।
    धूमिल दृष्टि, और कर्कश ध्वनि,
    वातावरण विषैला है।।

    इस संकट के समाधान हित,
    कई उपाय चल रहे हैं।
    मटन, चिकन, बिरियानी, अंडे,
    के उत्पाद फल रहे हैं ।।

    सच भी है यह, इन सब मे,
    प्रोटीन, विटामिन रहते हैं।
    इनसे हृष्ट_पुष्ट तन बनता,
    यह वैज्ञानिक कहते हैं।।

    लेकिन कालांतर मे इनका,
    दुष्प्रभाव भी पड़ता है।
    रोग पनपते हैं तन मे,
    मन मे भारी पन बढ़ता है।।

    बूचड़ खानों के प्रभाव से,
    धरा झुलसती जाती है।
    चीख_पुकारों से पशुओं की,
    मानवता थर्राती है।।

    वैसे भी जीवों की हत्या,
    महा पाप कहलाता है,,
    किंतु स्वार्थ के लिए कृत्य यह,
    अति जघन्य बन जाता है।।

    सिर्फ सुपोषण और स्वाद हित,
    यह निर्दयता ठीक नहीं।
    और दूसरे भी उपाय हैं,
    यह निष्ठुरता ठीक नहीं।।

    इसीलिए ऋषि, मुनियों ने,
    नियमित आहार_विहार रचे।
    तन, मन, बुद्धि, चित्त रक्षण हित,
    संयम, श्रेष्ठ विचार रचे।।

    जब तक थे हम निकट प्रकृति के,
    तब तक नहीं कुपोषण था।
    खान_पान, जीवन_यापन,
    चिंतन मे नहीं प्रदूषण था।।

    पंच गव्य के साथ_साथ,
    जो सात्विक भोजन करते थे।
    सौ सालों तक जीवित रहकर,
    मंजिल पूरी करते थे।।

    ईश्वर ने प्राकृतिक व्यवस्था,
    कुछ इस तरह बनाई है।
    सारे जीवन तत्व मिलें,
    ऐसी फसलें उपजाई है।।

    शुद्ध_ सात्विक भोजन लें हम,
    मौसम के फल भी खाएं।
    ऋतु_भुक, हित_भुक,मित_भुक,
    के अनमोल सूत्र भी अपनाएं।।

    तो फिर नहीं कुपोषण होगा,
    ना ही रोग ग्रसित होंगे।
    मन निर्मल, तन स्वस्थ रहेगा,
    बुद्धि, चित्त पुलकित होगें।।

    आओ मित्रों सब मिल_जुल,
    अब शास्वत का आहवान करें।
    नहीं रहेगा कहीं कुपोषण,
    संकल्पित अभियान करें।।

    वितरण को दुरुस्त करके,
    जन_जन मे जागृति लायेगे।
    सादा जीवन, उच्च विचारों,
    का महत्व समझाएंगे।।

    सब ही ,स्वस्थ , समृद्ध, सुखी हों,
    यही कामना है अपनी।
    रहे शांति संपूर्ण सृष्टि मे,
    यही भावना है अपनी।।

    डा शिव शरण श्रीवास्तव " अमल"

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