*पृथ्वी दिन*
मनहरण घनाक्षरी
पृथ्वी माता हितकारी,
सबकी पालनहारी,
अगणित उपकारी,
महिमा अपार है।
नदियां, पर्वत यहाँ,
ऐसा रूप और कहाँ?
हरी-भरी वसुंधरा,
कौन कलाकार है!
तेरी माटी प्राण प्यारी,
दूर करें पीड़ा सारी,
साफ रखें जलवायु,
करना सुधार है।
ग्रहों में तू अनमोल,
मान लेंगे सारे बोल,
ऋण तेरा उतारें तो,
सुखद संसार है।
मालिनी त्रिवेदी पाठक
वडोदरा