बहुत मनाया, मन ना माने।

*बहुत मनाया, मन ना माने।*
*कहां सान्त्वना, कहां वंचना,*
*यह पाग़ल क्या जाने?*
*बहुत मनाया, मन ना माने।*

*क्यों छूता तू उस छाया को,*
*जो प्रतिपल थल बदले?*
*तेरी तो वह एक सुने ना,*
*अपनी सब कुछ कह ले।*

*तेरी तो बिसात ही क्या है,*
*ठगे गये हैं सयाने?*
*बहुत मनाया, मन ना माने।*

*ऐसी भी है क्या नादानी,*
*बांध रहा डोरी से पानी?*
*मोल भाव क्यों करे हाट में,*
*पास नहीं जब कौड़ी कानी?*

*सरित सीप में खोज रहा है,*
*कब से तू मोती के दाने?*
*बहुत मनाया, मन ना माने।*

*चांद सितारों की कर बातें,*
*करे जुगुनुओं पर ही घातें,*
*बात-बात में, बात बदलता,*
*तेरी बात तो तू ही जाने।*

*कल्पवृक्ष के फल खाने को,*
*दौड़ चला धरती पर लाने।*
*बहुत मनाया, मन ना माने।*

*कहां सान्त्वना? कहां वंचना? यह पागल क्या जाने?*
*बहुत मनाया, मन ना माने।*

सुशील चन्द्र बाजपेयी, लखनऊ, उ0प्र0.*
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