कोई परिणाम नहीं मिला

    नर्मदा

    डॉ शीतल श्रीमाली उदयपुर राजस्थान कविता
     शीर्षक- नर्मदा 
    नदी नर्मदा बहती जाए नर्मदा बहती जाए 
    कल कल , छल छल, कल कल ,छल छल ,
    कर बहती जाए
     गीत नए गाए 
    लहरों के सुर सजाएं निकली मैकल पर्वत के अमरकंटक शिखर से जीवन से जन-जन को जोड़ती 
    बाधा विघटन की चट्टानें तोड़ती 
    बढ़ती जाती बढ़ती जाती जाने कितनी गाथाएं गढ़ती जाती 
    समय की सीमा पर पानी की पतवार चलाती
     नर्मदा नदी बढ़ती जाती बढ़ती जाती
     एक नाम नर्मदा इसका एक नाम रेवा 
    रामायण, महाभारत के हरदौर की साक्षी
     नदी यह भारत की पांचवी 
    विकास करती जीने का जज्बा जगाती
     आशा विश्वास की राह दिखाती 
    नर्मदा नदी बढ़ती जाती मेघदूत में नर्मदा हो गई रेवा
     ओमकारेश्वर तीर्थ बना बैठा महादेवा 
    मध्य प्रदेश से चल निकली 
    जा पहुंची गुजरात
     वहां भी हाथ पकड़ सबका निभाया साथ बढ़ती गई बढ़ती गई फली फूली सभ्यता कि नहीं कहानी कहती गई खंभात की खाड़ी में जा समाती है 
    नर्मदा अपना इतिहास  
    बह कर
     कल कल कर बताती है यह नदी नर्मदा 
    यह नदी नर्मदा 
    शीतल सी नदी नर्मदा बहती जाती है
     बहती जाती है
     धन्यवाद
     आभार

     डॉ शीतल श्रीमाली उदयपुर राजस्थान

    एक टिप्पणी भेजें

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    और नया पुराने

    संपर्क फ़ॉर्म