खोकर कैसे जिए कोई
खोकर कैसे जिए कोई
जो अपनो से इतंजार है
हर मुश्किल कैसे कहे कोई
जो उससे थोड़ा प्यार है
हर अपनों में दाग़ है कोई
कोई उसे हटाए तो कैसे
बिना दिल के अब धड़कन नहीं
वो लकीरें हाथ से मिटाए कैसे
दिल के दर्द छुपाए कैसे
दिल के जीने से उतरे कैसे
इस लम्बी लाइनों में कोई
आहिस्ता होके निकले कैसे
जीने के लिए नजर कितनी जरूरी है
सोने के लिए बिस्तर कितना जरूरी है
जैसे फूल के लिए एक आवारा भंवरा
सूनी पलकों के लिए कुछ आँसू भी...
तसल्ली के लिए रुमाल भी....
इस सफ़र में कुछ अड़चने है, हया है
लाल खून के साथ रिश्ता है कोई
यूँ ही नहीं धड़कने तपिश में जल रही है
लगता है ख़ुदा है हमेशा के लिए....
इक मुश्किल से जियादा मुश्किल है ये
इससे छूटकर तो सुकून कभी...!!
मनोज कुमार
गोंडा उत्तर प्रदेश