रगों में दौड़कर चलते थे इश्क

रगों में दौड़कर चलते थे इश्क


क्या हुआ बदन के ख़ुशबू जो आज तक नहीं
कहिए कि आरजू से औकात में रहें तेरे
वर्ना दिल फिसल गया तो तू ही नज़र आयोगे
कोई क्या महकायें गुलफाम अपने यूँ ही...
ये दुनियाँ वाले तो अभी मेरे इश्क देखें नहीं है
बताओ कि वो बात कैसी गुप्तगूँ थी
जो मेरे सफ़र में सारे मोहरे झुलस गए
क्या गुलाम है, कोई बादशाह बेगम से अपने
जो तेरी साया सामने होते नहीं हैं
कल कितना मुझपे मरती थी तू...
और हर आहट से डरती थी तू...
बस लूँ है आजकल शहर में मेरे
क्या जानेगी तू भी शहर ,जो तेरी नज़र में वीरान पड़े हैं

मुझसे जो रिश्ता जोड़ोगी, तो पछताओगी
कभी घर बुलायेंगे तो दौड़ी आओगी
 तुझसे प्यार किया है बेहद सनम...
  तू भी दिल में देखोगी तो खो, जाओगी!!




- मनोज कुमार
  गोण्डा,उत्तर प्रदेश
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