नारी


   "नारी"        

युगों युगों से सहती आई है 
उत्पीड़न /शोषण 
पुरूष समाज द्वारा 

हर क्षण/हर घड़ी सताई
 जाती रही है
कहीं पत्नी बनकर,
तो कहीं रखैल बनके भी
कहीं कहीं तो बहन बेटी
होकर भी/झेलती है कष्ट बहुत

घर में पति से मार खा-
 खा कर भी/ उफ्फ नही करती कभी
बाहर मनचलों/शोहदों ने 
जीना मुहाल किया है अक्सर

गंदी नज़रों की शिकार हुई सदैव
मानव भीतर बैठा दानव/ उसे 
झपटने को आतुर दिखता है

लेकिन किसी को दोष 
नहीं देती वह/ क्योंकि - जानती है
 नारी रूप में जन्म
 लेना ही सबसे बड़ा 
अभिशाप है पृथ्वी पर

मालूम है भली भांति- उसे
पृथ्वी की कोई ऐसी जगह नहीं/जहां 
नारी जीवन हो सुरक्षित

आय दिन जब होते हैं
 बलात्कार/ उत्पीड़न/ 
ससुराल वालों द्वारा जलाकर 
मार डालने की अनगिनत
 घटनाएं/दरिंदे लूटते हैं 
सरे आम अस्मत/किसी नारी की

तो न्याय की लम्बी लम्बी 
दलीलों के बावजूद ये 
नपुंसक समाज/नारी को
 न्याय दिला पाने में होता है विफल
मिलती है तो सिर्फ
 बदनामी/समाज की घृणा/ ताने/गंदी गंदी गालियां......

और.... और... और...न्याय
चुपचाप आँखों पर
 काली पट्टी बांध देख
 रहा होता है यह सब......?

-मोहम्मद मुमताज हसन 
रिकाबगंज, पोस्ट टिकारी, ज़िला गया, बिहार - 824236
मोबाईल - 7004884370
expr:data-identifier='data:post.id'

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

7

6

- हम उम्मीद करते हैं कि यह लेखक की स्व-रचित/लिखित लेख/रचना है। अपना लेख/रचना वेबसाइट पर प्रकाशित होने के लिए व्हाट्सअप से भेजने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
कंटेंट लेखक की स्वतंत्र विचार मासिक लेखन प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के लिए यहाँ क्लिक करें।। 


 

2