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    वीर कुंवर सिंह गाथा


                         शीर्षक
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                 वीर कुंवर सिंह गाथा
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    आर्यावर्ते जंबूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे,
    देश सुंदर समृद्ध प्यारा हिंदुस्तान।
    हिमालय जिसका हिमकिरीट है,
    और चरणों को पखारता सागर।।
    इसी देश के बिहार प्रांत में,
    है जिला भोजपुर जगदीशपुर गांव।
    ऐसे थे जहां राजा साहबजादा सिंह,
    और वामांगी पंचरतन देवी महान।।

    राजा भोज के वंशज थे वे,
    वीर कर्मठ राजपूत वंश था परमार।
    उनके घर में आया शुभ दिवस,
    जन्मे पुत्र रत्न वीर कुंवर महान।।

    दिवस 13 नवंबर वर्ष 1777 था,
    शुभ दिन बालक कुमार के जन्म का।
    अतुलित बल था जिसके भीतर,
    दृढ़ संकल्प शक्ति अटूट विश्वास।।

    तीन छोटे भाई भी थे उनके,
    अमर सिंह, दयालु सिंह, राजपति सिंह।
    बचपन बीता घुड़सवारी, तलवारबाजी में,
    और कुश्ती का गुर लिए सीख।।

    मेवाड़ के राणा प्रताप के वंशज,
    सिसोदिया राजपूत थे राजा फतेह नरिया।
    उनकी सुंदर सुलक्षणा कन्या से,
    परिणय सूत्र में बंधे वीर कुंवर।।

    पुत्र रत्न एक हुए दलभजन सिंह,
    वीर कुंवर सिंह के राज महल में।
    सोहर उठी सर्वत्र खुशियां मनी,
    अति हर्षित हुए वीर कुंवर तनमन में।।

    बिगुल बजा जब 1857 के संग्राम का,
    वीर कुंवर थे हो चले अस्सी के।
    क्या मजाल शिकन हो बुढ़ापे का,
    नया जोश था उनके रग-रग में।।

    वे महानायक अन्याय विरोधी थे,
    थे स्वतंत्रता के अमर पुजारी वे।
    सेनापति मैकू सिंह को साथ लेकर,
    महा समर में सैनिकों का नेतृत्व किए।।

    27 अप्रैल 1857 को कुच किए आरा को,
    दानापुर और भोजपुर के सैनिकों के साथ।
    कब्जा जमाए आरा शहर पर,
    यूनियन जैक उतार फहराए अपना ध्वज।।

    आगे भारी रण हुआ अंग्रेजों से,
    बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में।
    जैसे ही जगदीशपुर गए सिपाही,
    आरा पर फिर कब्जा किया अंग्रेजों ने।।

    जगदीशपुर पर अंग्रेजों ने हमला बोला,
    जन्मभूमि छोड़े अमर सिंह के साथ।
    बांदा, रीवा, आजमगढ़, बनारस, बलिया,
    गाजीपुर और गोरखपुर में हुआ विप्लव रण।।

    23 अप्रैल 1858 को अंतिम रण लड़े जगदीशपुर में,
    कंपनी के भाड़े के सैनिकों को खदेड़ा।
    उतार फेंका यूनियन जैक किले से,
    अपना ध्वज फहराए जगदीशपुर में।।

    पार कर रहे थे गंगा नदी वीर कुंवर जब,
    ब्रिगेडियर की पड़ी नजर कुंवर पर।
    गोलियां चलवाई कलाई छलनी हुई,
    बांह कांट मां गंगा को किए अर्पित।।

    वीर कुंवर सिंह सो चले चिर निद्रा में,
    26 अप्रैल 1818 का था पुण्य दिवस।
    मातृभूमि का अमर सिपाही वह,
    न्योछावर हुआ स्वतंत्रता की बलिवेदी पर।।

    जब तक रहेंगे सूरज चांद नभ में,
    वीर कुंवर सिंह का नाम रहेगा।
    हे महानायक, हे महामानव,
    तुझसे गौरवान्वित सारा हिंदुस्तान रहेगा।।



    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"

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