बचपन मेरा लोट आए


चित्र लिखित कविता

वह बचपन के दिन याद नहीं
धूल मिट्टी से सने कपड़े सारे 
पसीने से सबका तरबतर होना 
वह फूगड़ी और वह खिलौना ,
न जाने कहां रूठ गई खुशियां,
मित्रों से खाली है दिल का कोना 
खिलखिलाते दिन और वह बारिश 
खेल के बेहोश थककर वो सोना ।।

दिखावे की दोस्ती प्यार का होना 
आज कही रह गई पैसे की चमक 
और कही पर बेरोजगारी का होना 
हां अपने ही शहर में दोस्तो का खोना।।

काश लौट आते वह दिन मासूम से,
तो मिल जाती तसल्ली मुझको भी 
दिल खोलकर करते बाते अपनी अपनी 
नही होता दोस्तो मैं दिखावे का रोना ।।

बड़ी महंगी हुई है दोस्ती भी अब यहां 
कभी किसी से अपने हालत मत रोना 
ये बचपन नही है वो मासूम सा दोस्तों 
जब कीमती होता था दोस्त का खिलौना ।।

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
        ग्वालियर , मध्य प्रदेश
             भारत
8109159541
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