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    विज्ञान

    साइंस कम्युनिकेशन थ्रो फोक मिडिया पुपेटरी :
          अनुराग्यम ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के उपलक्ष्य में जो विज्ञान यात्रा शुरू की थी उसके चौथे दिन के कार्यक्रम में संचालिका डॉ अंकिता बहेती ने विज्ञान को लेकर कहा कि विज्ञान की मदद से नई नई चीजें बनाई जाती हैं, और नये नये अविष्कार होते आए हैं। अंतरिक्ष में पहुंचने से लेकर रोबोट कम्प्यूटर की खोज आदि बहुत सारी चीज़ें आ गई हैं। अवतार बन गये हैं। हम 3 डी मोड्स में बात करते हैं। विज्ञान का हमारे जीवन में हमेशा एक महत्व रहा है। और इस विषय पर बच्चों को स्कूल और कॉलेजों से ही शिक्षा शुरू कर दी जाती है ताकि उनमें वैज्ञानिक सोच डिवेलप हो। वो बचपन से ही हर चीज को जानने और समझने की जिज्ञासा और मनोवृत्ति को आगे ले कर जाए।
          आज के कार्यक्रम में संचालिका डॉ अंकिता बहेती के साथ चर्चा करने के लिए मंच पर डा एस एम फैजानी उपस्थित हैं जो कि राष्ट्रीय विज्ञान प्रचारक, प्रोजेक्ट डायरेक्टर ओफ साइंस के साथ अनुराग्यम के एडवाइजर भी है। इन्होंने बहुत सारे साइंस के प्रोग्राम कंडक्ट कराए हैं जो Under DST, under ministry of art science के हैं। ये ईस्ट से वेस्ट सभी क्षेत्रों को कवर करते हैं। इसके साथ साथ ये बहुत सारी साइंस प्रदर्शनी और साइंस फेयर भी लगाते रहते हैं। जिसके साइंस कम्युनिकेट होता रहता है। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग विज्ञान से जुड़ें। 
    कार्यक्रम में संचालिका डॉ अंकिता बहेती ने पूछा कि फोक मिडिया पुपेटरी को साइंस कम्युनिकेशन में इन्क्लूड करके इसे कितना आगे तक ले जाया जा सकता है। 
    डॉ फैजानी ने प्रत्योत्तर देते हुए बताया कि हर एरिया का अपना अपना कल्चर है। जिसे साइंस के अंदर तब्दील करते हैं। कम्युनिकेशन के लिए सबसे बड़ी प्रोब्लम language की आती है। यदि लैंग्वेज को कवर भी कर लिया जाए तो दुसरी प्रोब्लम आती है एपोजिस्म साइंस की। मतलब अपनी बात को इस अंदाज से कहना कि जो पब्लिक को हर बात आसानी से समझ में आ जाए। जैसे पोटेशियम परमैगनेट को अक्सर पानी के टैंक में डाल दिया जाता है ताकि जर्म वैगरह खत्म हो जाए। उसे यदि हम आम पब्लिक को उसका फार्मूला Kmno4 बताएंगे तो उसके समझ में नहीं आएगा। यदि हम उसे बोल देते हैं कि यह एक लाल दवा है। तो आसानी से समझ जाएंगे। अर्थात साइंस कम्युनिकेशन के लिए लैंग्वेज बहुत जरूरी है। डॉ फैजानी लोगों की लैंग्वेज के हिसाब से क्रियेटिव एक्टिविटीज बनाते हैं। जिसमें पुपेटरी के माध्यम से 3-7 मिनट की स्क्रिप्ट में ऐसा मैसेज देते हैं जिससे इफेक्टिव बात कही जा सके। डॉ फैजानी ने पुपेट के बारे में बताया कि इसकी शक्ल अलग अलग होती है जैसे स्प्रिंग, जिलेट और राड ।हर स्टेट में इसका किरदार भी अलग अलग होता है।
    कम्युनिकेशन के इस तरीके से ओडिएंस से जो कहेगा वो वापिस रिएक्ट करती है। इसी तरह आम जनता से आसानी से बात चीत हो जाती है। बातों बातों में डा फैजानी ने पुपेट बनाने की विधि भी बताई। पुपेट रद्दी पेपर और रफ मैटेरियल से बनता है। रद्दी पेपर और रफ मैटेरियल को 5-6 दिनों तक पानी में गलाकर रखा जाता है। फिर उसे मिक्सर या ग्राईंडर में पीसकर उसका आटे जैसा बना लेते हैं। फिर उसमें पिसी हुई मेथी मिलाते हैं। क्योंकि वो आटे को अच्छा शेप दें देती है। फिर बैलून पर स्ट्रक्चर तैयार करते हैं। कागज़ की पट्टियां काट लेते हैं। और उसमें चिपकाते हैं। उसकी तीन चार लेयर लगा कर उसे सुखाते हैं। पुपेट बनाते समय उसे अलग अलग रूप देते हैं। जो बहुत ही इको-फ्रेंडली, सुंदर और टिकाऊ होते हैं। वेस्ट मैटेरियल का बहुत अच्छे से उपयोग हो जाता है इसमें। 
    डॉ फैजानी ने बताया कि आज भी यदि इसे शोसल मीडिया पर शार्ट वीडियो बना कर पुपेट के जरिए लोगों को अपनी बात बताएं तो वह सुनेंगे भी और इसकी तरफ आकर्षित भी होंगे। 
    डॉ अंकिता बहेती जी ने कहा कि रूलर इंडिया में आज भी बहुत से अंधविश्वास हैं जिन तक इस माध्यम से विज्ञान पहुंचाया जाए तो वो इसे समेझेंगें और इसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करेंगे। लेकिन सीधे सीधे उन्हें बतलाएंगे तो वो नहीं समझ पाएंगे। उन्हें उनकी ही भाषा में समझाने पर वह ज्यादा अच्छे से समझ जाएंगे।
    डॉ फैजानी ने बताया कि आज भी हमारे देश में ऐसे बहुत से क्षेत्र है जहां विज्ञान के बारे में लोगों को डोर टू डोर डिलेवरी देने की जरूरत है।
    डॉ अंकिता बहेती ने पूछा कि आज के सोसल मीडिया के दौर में जो कई लोगों को एक साथ जोड़ कर रखती है उसमें पुपेट को माध्यम बनाकर साइंस कम्युनिकेशन में कभी कोई समस्या आई क्या।

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    इस बात के जवाब में डा फैजानी ने कहा कि ज्यादातर सभी पत्रकार उनसे पूछते हैं कि आज के जमाने में पुपेट का क्या रोल है। इस पर उन्होंने बताया कि यह ओल्ड इज़ गोल्ड का फंडा है। इंसान जहां से शुरू होता है वहीं पर वापिस आ जाता है। पुरानी चीजों से उसे लगाव होता है। कहीं न कहीं पुरानी चीजें फिर से वापिस आ रही है। पुपेट एक फनी इमेज है जिसके जरिए हम अपनी हर प्रोब्लम को लोगों तक पहुंचाते हैं। डॉ अंकिता बहेती ने बताया कि हमारी नेशनल एजुकेशन कोलेज में आने वाले सालों में बदलाव हुआ है जिसमें फोक लैंग्वेज में पढ़ाई होगी। ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक विज्ञान पहुंचाया जाए। 

    आज टीचर को भी नये नये वैरिएशन ढ़ूंढ़ने पड़ते हैं बच्चों को पढ़ाने के लिए। यदि वह भी पुपेटरी के माध्यम से पढ़ाई करवाए और जहां जिन स्कूलों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पढ़ाया जाना एक फैशन की तरह होता है। वहां पर भी पुपेटरी को ले जा कर वर्कशॉप कराएं तो इससे कितना फायदा होगा। कार्यक्रम के डा अंकिता बहेती के द्वारा पूछे जाने पर डा फैजानी ने बताया कि उन्होंने अभी तक बहुत सारे स्कूलों में पुपेटरी के वर्कशॉप कराईं है। उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूलों वाले ज्यादा इंटरेस्टेड नहीं होते और प्राइवेट स्कूलों में जो छोटे स्कूल वाले हैं वो सोचते हैं कि यह बिल्कुल नई चीज है। और इसे पूरे तन मन धन से करते हैं। और जो स्कूल मीडियम है वो थोड़े बहुत नखरे करते हैं फिर मान जाते हैं। और जो हाई फाई स्कूल वाले हैं वो इसके प्रभाव पूछते हैं।
    छोटे क्लासों के बच्चों को यदि पुपेटरी के जरिए जा कर सिखाया जाए तो बच्चे बहुत ही रूचि लेकर इसे देखते हैं और इससे सीखते भी है। ज्यादातर सभी जगह लैंग्वेज की बहुत प्रोब्लम आती है।सारी चीज़ें यदि हमारी अपनी लैंग्वेज में होती हैं तो बच्चे समझ कर पढ़ाई करते हैं और काबिल बनते हैं। यही सारी चीज़ें साइंस पर करने का मकसद यही है कि अपनी भाषा के अंदर कन्वर्ट करके विज्ञान को लोगों तक पहुंचाया जाए। डॉ अंकिता बहेती जी ने फैैैैजानी जी से पूूछा की जो उन्होंने पुपेटरी के माध्यम से साइंस कम्युनिकेशन का सस्ता, टिकाऊ और पर्यावरण फ्रेंडली आइडिया निकाला है वो क्या केवल छोटे क्लासों तक ही सीमित है या बड़ी क्लासों में भी आप इसकी प्रेजेंटेशन करवाते हैं। क्या यह वहां भी बहुत इफेक्टिव है। 
    फैजानी जी ने बताया कि बड़ी क्लासों के बच्चों से वह एक स्क्रिप्ट तैयार करवाते हैं। जिसमें हंसी मजाक और साइंस से संबंधित चीजें जोड़ कर 5-7 मिनट का नाटक तैयार करते हैं जिसका टाइटल ऐसा रखते हैं जिससे पब्लिक और बच्चे आकर्षित होते हैं। और इस नाटक को पुपेट के जरिए जनता तक अपना मैसेज पहुंचाते हैं। 
    अंकिता बहेती जी ने पूछा कि यदि इसका विडियो बना कर सोसल मीडिया पर डाला जाए तो यह कितना इफेक्टिव होगा। इस पर फैजानी जी ने बताया कि यह आइडिया उनके दिमाग में अभी अभी आया है। वो ऐसे ही पुपेटरी के शार्ट वीडियो बना कर सोसल मीडिया पर डाल कर यह प्रयोग भी अवश्य करेंगे।

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    अंकिता बहेती जी ने फिर पूछा आज सभी लोग जानते हैं कि अपनी बात समझाने का पुपेट भी बहुत अच्छा माध्यम है। इतना पुराना भी नहीं है। शायद यह एक तरह से एम्प्लॉयमेंट भी जनरेट कर रहा है। जो फोक लोग हैं वो अपनी लैंग्वेज में बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। 
    इस बात को स्पष्ट करते हुए डॉ फैजानी ने कहा कि इसका एक और तरीका है वो यह कि गांवों में जाकर 100 पुपेट बहुत खूबसूरत तरीके से बना कर जिनको लेकर कहीं भी जाएं और एक एन जी ओ की तरफ से उनकी हेल्प के लिए एक वैनर लगाया जाए। उनको लेकर एक स्क्रिप्ट तैयार की जाए। जिसकी कोस्ट लगभग 5 रुपए आती है। और उसे हम लगभग 200-300 रुपए तक में बेच सकते हैं। कई लोग इसे मिडीयम ओफ फन नहीं तो डेकोरेशन के तौर पर भी खरीदना पसंद करते हैं। तो एक तरह से यह एम्प्लॉयमेंट भी जनरेट करता है।
    अंकिता बहेती जी के पूछने पर डा फैजानी ने बताया कि उनका रूझान इस तरफ कैसे गया और पुपेट को लेकर आगे बढ़ने की और उसके साथ काम करते चले गए। 2007 में जब वे एक टीचर थे। तब ये तकनीक नई नई आई थी जो उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसकी 5 दिनों के वर्कशॉप ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया जैसे कि थियेटर एक्टिविटीज, डायलॉग राइटिंग। यह एक ऐसा टूल है जो आपके हाथ में आ गया तो इसके माध्यम से आप अपनी बात जमाने के सामने पहुंचा सकते हैं वो भी किसी बिना शर्म हया के।
    इससे सब कुछ संभव हो सकता है। यह पूरी एक कला है। ये हमारी इंडियन कला है जिसे आगे नहीं बढ़ाएंगे तो ये कहीं न कहीं लुप्त हो जाएगी। वरना हम रेडिमेड पर आ जाएंगे। ये हमारी कल्चर है जो कभी खत्म नहीं होती। अंकिता बहेती जी ने बताया कि इसके माध्यम से सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि एक दूसरी एक्टिविटी भी सीखते हैं। अंकिता बहेती जी ने सुभाष चन्द्र लखेड़ा जी से प्रभावित होकर जापानी रूप में सुझाई गई विज्ञान और जीवन को लेकर कुछ पंक्तियां सुनाई। 
    विज्ञान और जीवन
    जीवन शैली जब मिले विज्ञान बने आसान
    तथ्य आधार भरते सुविचार हर्ष अपार
    दें प्रशिक्षण बनाये नियमित है नियमचर
    विज्ञान सार जीवन का आधार सत्य भंडार
    जो अपनाये विज्ञान समझाते मूल पा जाए
    डॉ फैजानी ने कहा कि वह अनुराग्यम के साथ मिलकर पुपेट वर्कशॉप को बड़े लेवल पर भी करना चाहते हैं। डॉ अंकिता बहेती जी के पूछने पर डा फैजानी ने अपना एक अनुभव भी बताया कि 17 साल पहले जब उनकी पहली वर्कशॉप थी तब उनके सामने एक परेशानी भी आई। वो ये है कि जब वह वर्कशॉप पर गये तो वहां के लोकल ओर्गेनाइजर ने गांव के टीचर्स की एक ट्रेनिंग रखी थी जिसमें सभी चले गए और वो वहां पर अकेले ही रह गए। वहां पर उन्हें एक रिसर्च पर्सन था जिसे हैंडल करना बहुत मुश्किल काम था। वो मुझे कोई आडर देते तो वहां पर लड़ाई चालू हो जाती थी। उन्हें देख कर उसे लगा कि यह तो एक बच्चा है यह क्या और कैसे सिखाएगा। वहां पर और भी उम्रदराज लोग थे और सरकारी जाब वाले भी। डॉ फैजानी ने पुराने हीरो की मिमिक्री करके अलग अलग तरह से आवाज निकालनी शुरू कर दी। समूह बनाकर एक्टिंग की और डांस किया। तब उन्हें लगा कि यह कुछ मजेदार है। और वो लोग भी मजे लेने लगे तब डा फैजानी ने मोहब्बत को छोड़कर इसे विज्ञान में कन्वर्ट किया और वो इस तरह से सीख गये। राजस्थान में तो पुपेट का मेन कल्चर है। डॉ अंकिता जी के कहने पर डा फैजानी ने जाते जाते बच्चों के लिए संदेश दिया ताकि बच्चे साइंस को लेकर जाग्रत हो जाएं। डॉ फैजानी ने कहा कि यदि बच्चे अपनी भाषा के अंदर चीजों को समझेंगे तो काबिल बनेंगे। जिस चीज से आप डरते हैं वो आपके सामने जरूर आती है। इस समस्या से निजात पाने का इसका एक तरीका है कि दिमाग को डायवर्ट कर लिया जाए। आपका जो दिल करे वो करें। इनजाय करें, म्यूजिक सुनें और टेंशन फ्री रहें। इसके साथ ही सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए इस कार्यक्रम का समापन किया।

                 -सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

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