आज हुवा हु एक बार

आज हुवा हु एक बार
तुमसे मिलने को बेक़रार
सोया नहीं कई रातो से
तेरे यादो में मेरे यार
             वो दिन भी कितने अच्छे थे
             जब हम मुइले बहुत अच्छे थे
             करते थे बाते चार
             कभी न होती थी  तकरार
मुझे याद है जब हम मिले थे
अम्बर में फूल खिले थे
मैने तुझे बताया था
तूने मुझे  सुनाया था 
           हम घुल मिल गए थे अईसे
           जैसे धूल जाता है दाल में अचार
            अब दिन बदल गए है यार
            तुम दूर कही माय दूर यह
मिलने को हु बेकरार
ये तो बस सपना है
नाम मात्र वो अपना है
बस ख्यालो में वो आती है
             वापिस चले जाती है
             कुछ तू बात है वो
             ख्यालो में आते है
             कुछ बताये बिना चले जाती है
~ त्रिलोक कुमार
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