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    साथ अगर तुम होते तो...

    मिले मुझको बहुतों अपने,पर अपनी में वो बात नही।
    तुम थी जैसे साथ मेरे, वैसा कोई भी साथ नहीं,
    दुआ करूं मैं रब से,बस आखरी मुलाकात होता..
    साथ अगर तुम होते तो ,न जाने क्या बात होता।।

    सर्द पडी थी मौसम ,हर कोई बस एक आस में थे।
    क्या सर्दी क्या गर्मी,हम दोनो जब साथ में थे,
    दूर गई हो जब से तुम, न ही कोई बरसात होता..
    साथ अगर तुम होते तो, न जाने क्या बात होता।।

    पत्थर दिल नही हो तुम,तुमको भी कोई तडपाता है।
    याद मुझे है वो सारे लम्हे, क्या तुमको भी याद आता है,
    पता चलता तुमको भी ,अगर तुम्मे भी जज्बात होता..
    साथ अगर तुम होते तो, न जान क्या बात होता।।

    Shahid baksh

    3 टिप्पणियाँ

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