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    साहित्य और जीवन

    साहित्य समाज का दर्पण है एक साहित्यकार समाज की वास्विक तस्वीर को शाश्वत अपने साहित्य में उतारता रहा है मानव जीवन समाज का ही एक अंग है मनुष्य परस्पर मिलकर समाज की रचना करता है ईस प्रकार समाज और मानव जीवन का संबंध भी अभिन्त्र है समाज और जीवन दोनो ही एक दुसरी के पूरक है आदिकाल के वैदिक ग्रंथ वो उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्य ने मनुष्य जीवन को सदाव ही प्रभावित किया है दूसरे सब्द्दू का किसी भी कल के साहित्य के अध्ययन से हम तत्काल मानव जीवन के रहना शान सह अन्य गतिविधिया का सहज ही अध्ययन कर सकते हैं या उसके विषय मैं संपुन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के उत्थान व चरित्र विकास में सदाव सहयोगी होता है 

    Rohit Rakesh Kumar Gupta 

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