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    मादक पदार्थों का सेवन प्रमुख विसंगति

    आज समाज में अनेक विसंगतियों व्याप्त हो चुकी हैं, जिनमें से नशाखोरी अर्थात् मादक पदार्थों का सेवन प्रमुख विसंगति दृष्टिगत है। मानव का जीवन दो विपरीत ध्रुवों के बीच गतिमान रहता है। सुख और दुःख, लाभ और हानि, यश और अपयश तथा जीवन और मृत्यु ये कभी अलग न होने वाले दो किनारे हैं।

    सुख के समय में आनन्द और उल्लास, हँसी और कोलाहल जीवन में छा जाते है, तो दुःख में मनुष्य निराश होकर रुदन करता है। नैराश्य के क्षणों में बोझ और दुःख को भुलाने के लिए वह उन मादक द्रव्यों का सहारा लेता है, जो उसे दुःखों की स्मृति से दूर बहा ले जाते हैं। ये मादक द्रव्य ही नशा कहे जाते हैं। मादक द्रव्यों को लेने के लिए आज केवल असफलता और निराशा ही कारण नहीं बने हैं, अपितु रोमांच, पाश्चात्य दुनिया की नकल और नशे का व्यापार करने वाले लोगों की लालची प्रवृत्ति भी इसमें मुख्य सहायक होती है।

    नशाखोरी अर्थात् मादक पदार्थों के सेवन से तात्पर्य नशाखोरी से तात्पर्य है- नशीले पदार्थों का सेवन करना; जैसे- तम्बाकू, गुटखा, पान-मसाला खाना तथा शराब पीना आदि मादक पदार्थों का सेवन करना कहलाता है। नशीले पदार्थ वे मादक और उत्तेजक पदार्थ होते है, जिनका प्रयोग करने से व्यक्ति अपनी स्मृति और संवेदनशीलता अस्थायी रूप में खो देता है। नशीले पदार्थ स्नायु तन्त्र को प्रभावित करते हैं और इससे व्यक्ति उचित-अनुचित, भले-बुरे की चेतना खो देता है। उसके अंग-प्रत्यंग शिथिल हो जाते हैं, वाणी लड़खड़ाने लगती है, शरीर में कम्पन होने लगता है। आँखें असामान्य हो जाती है। नशा किए हुए व्यक्ति को सहजता से पहचाना जाता है। नशीले पदार्थों में आज तम्बाकू भी माना जाता है, क्योंकि इससे शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। लेकिन विशेष रूप से जो नशा आज के युग में व्याप्त है, उसमें चरस, गांजा, भांग, अफीम, स्मैक, हेरोइन जैसी ड्रग्स उल्लेखनीय हैं। शराब भी इसी प्रकार का जहर है, जो आज सबसे अधिक प्रचलित है।

    विभिन्न नशीले पदार्थों के सेवन के प्रमुख कारण सुल्फा, गांजा, भांग, धतूरा, अफीम, स्मैक, हेरोइन जैसी अनेक मादक (नशीली वस्तुएँ तथा शराब जैसे नशीले पदार्थों का प्रचलन तो समाज में बहुत पहले से ही था, लेकिन आधुनिक युग में पाश्चात्य संस्कृति से नशे को नए रूप मिले हैं। मारफिन, हेरोइन तथा कोकीन जैसे संवेदी मादक पदार्थ इनके उदाहरण हैं। इस नशे के व्यवसाय के पीछे आज अनेक राष्ट्रों की सरकार का सीधा सम्बन्ध होता है, जिनमें बड़े-बड़े अधिकारी वर्ग भ सम्मिलित होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर फैले नशे के व्यवसायियों का जाल बहुत ह संगठित होता है। पाश्चात्य देशों में 'हिप्पी वर्ग' का उदय इस नशे के सेवन करने वाले लोगों के रूप में हुआ है। आज के भौतिकवादी जीवन में नशाखोरी के अनेक कारण है।

    मादक पदार्थों के सेवन अर्थात् नशे के दुष्प्रभाव नशीले पदार्थों का शरी पर ही नहीं अपितु सामाजिक, आर्थिक एवं पारिवारिक जीवन पर भी बुरा प्रभा पड़ता है। शराब की लत पारिवारिक, शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक सभी स्त पर अपना कुप्रभाव दिखाती है। इससे व्यक्ति के स्नायु संस्थान प्रभावित होते निर्णय और नियन्त्रण शक्ति कमजोर होती है, आमाशय, लिवर और हृदय प्रभावि होते हैं। कुछ लोग शराब पीकर ड्राइविंग करते है, जो अत्यन्त हानिकारक है। नशे क लत के कारण लोग बच्चों की परवरिश और शिक्षा का उचित प्रबन्ध नहीं क पाते हैं।
     नशे के कारण लज्जा को त्यागकर अनैतिक और असामाजिक कर्मों की ओर भी उन्मुख होते हैं। संवेदी मादक पदार्थ हृदय, मस्तिष्क, श्रवण शक्ति, स्नायु, आँख आदि पर अपना प्रभाव दिखाते हैं और संवेदन क्षमता को अस्थायी रूप में मन्द तथा विकृत कर देते हैं। एक बार इस नशे की लत पड़ने पर लोग निरन्तर इसमें धँसते चले जाते हैं और इसकी माँग बढ़ती ही चली जाती है। इस माँग को पूरा करने के लिए वह अपराधी कार्यों में भी भाग लेने लगता है। अनेक घर और परिवार इस भयावह नशे से उजड़ गए हैं और कई युवक जीवन से ही हाथ धो बैठते हैं। इन युवकों का प्रयोग अनेक असामाजिक संगठन भी करते हैं।
    आज के आतंकवाद फैलाने एवं विनाशकारी हथियारों की खरीदारी में भी इनका हाथ रहता है। बड़े पैमाने पर ये हत्याएँ, लूटपाट, आगजनी तथा दंगे-फसाद करवाकर राष्ट्र की एकता के लिए गम्भीर चुनौती उत्पन्न करते हैं।

    नशा मुक्ति के उपाय इन दुष्प्रवृत्ति को रोकने के लिए सरकार और जनता दोनों का सक्रिय सहयोग ही सफल हो सकता है। सरकार में भ्रष्ट लोगों और अधिकारियो, जो इस अपराध में भागीदार होते है, को यदि कड़ी सजा दी जाए, तो जनता के लिए यह एक उदाहरण और भय का कारण बन जाएगा। बड़े-से-बड़े गिरोह और व्यापारियों को भी कड़े दण्ड दिए जाने आवश्यक हैं। कठोर कानून बनाना और कठोरता से उनका पालन करना भी नितान्त आवश्यक है। दोषी व्यक्ति को किसी भी रूप में चाहे वह कोई भी हो, क्षमा नहीं करना चाहिए। संचार माध्यम. टी. वी., पत्र-पत्रिकाएँ आदि भी इसके प्रति जनमत तैयार कर सकते हैं और लोगों की मानसिकता बदल सकते हैं। इसके लिए अनेक समाज सेवी संस्थाएँ, जो सरकारी और गैर-सरकारी रूप में कार्य करती हैं, महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। इस नशे में प्रवृत्त लोगों को सहानुभूति और प्यार के द्वारा ही सही, धीरे-धीरे रास्ते पर लाया जा सकता है। उनकी मनःस्थिति को बदलना और उन्हें सबल बनाकर तथा नशा विरोधी केन्द्रों में उनकी चिकित्सा करवाकर उन्हें नया जीवन दिया जा सकता है।

    उपसंहार भारत जैसे विकासशील देशों में इस प्रकार की प्रवृत्ति देशघाती होती है। और इससे युवा शक्ति को रचनात्मक कार्यों के प्रति प्रोत्साहित करना कठिन हो जाता है। अतः परिवार, देश और समाज सभी के सहयोग से ऐसे दिशाहीन युवकों को सुमार्ग पर लाया जा सकता है। इसके लिए विद्यालयों में इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए, ताकि इस आत्मघाती प्रवृत्ति से युवा पीढ़ी को परिचित कराया जाए और इसके विनाश को सम्मुख रखकर उन्हें इससे दूर रहने के लिए प्रेरित किया जा सके। व्यक्ति, समाज, सरकार और अधिकारियों के सहयोग से ही यह सम्भव हो सकता है।

    आर्यन पांडेय

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