कोई परिणाम नहीं मिला

    मैं बोझ नहीं भविष्य हूँ बेटा नहीं पर बेटी हूँ

    प्रस्तावना में माताओं से पूछना चाहता हूँ कि बेटी नहीं पैदा होगी तो बहू कहाँ से लाओगी? हम जो चाहते हैं समाज भी वही चाहता है। हम चाहते हैं कि वह पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटियों को पढ़ाने के लिए तैयार नहीं होते। आखिर यह दोहरापन कब तक चलेगा? यदि हम बेटी को पढ़ा नहीं सकते तो शिक्षित बहू की. उम्मीद करना बेईमानी है। जिस धरती पर मानवता का सन्देश दिया गया हो, वहाँ बेटियों की हत्या दुःख देती है। यह अल्ताफ़ हुसैन हाली की धरती है। हाली ने कहा था, "माओ, बहनों, बेटियों दुनिया की जन्नत तुमसे है।" ये उद्गार प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के, जो 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत शहर से 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत कर चुके हैं। यह अभियान केन्द्र सरकार के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रमों में से एक है। भारत केअभियान की आवश्यकता अब प्रश्न उठता है कि इस अभियान की जरूरत क्यों पड़ी? जाहिर है इसके पीछे कन्या भ्रूण हत्या के कारण देश में तेजी से घटता लिंगानुपात है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या मात्र 940 है 0-6 वर्ष के आयु वर्ग का लिगानुपात तो केवल 914 ही है। इस आयु वर्ग में सर्वाधिक चिन्ताजनक स्थिति हरियाणा (830), पंजाब (846), जम्मू-कश्मीर (859), राजस्थान (888), चण्डीगढ़ (867) और राजधानी दिल्ली (866) की है। संयुक्त राष्ट्र संघ की माने तो भारत में अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2000 अजन्मी कन्याओं की हत्या कर दी जाती है।

    कन्या भ्रूण हत्या के कारण भारतीय संस्कृति में 'यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता' कहकर स्त्रियों की महत्ता बताई गई है, परन्तु वर्तमान समय में भारत के लोग इसे भूल चुके हैं। पुत्र की पुत्री की अपेक्षा श्रेष्ठ समझना तथा पुत्री को बोझ मानते हुए उसकी उपेक्षा करने की मानसिकता की परिणति यह हुई है कि पुत्री को पैदा होते ही मार दिया जाता है। आधुनिक दौर में चिकित्सा के क्षेत्र में हुई तकनीकी उन्नति ने तो इस कार्य को और भी सरल बना दिया है अर्थात् अब गर्भ में कन्या भ्रूण होने की स्थिति में उसे प्रसव पूर्व ही मार दिया जाता है। यह हमारे पितृसत्तात्मक समाज का कटु सत्य है कि स्त्री को केवल एक 'वस्तु' समझा जाता है और एक मनुष्य के रूप में उसे सदा कम करके आंका जाता है। आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यों में उसकी उपयोगिता न के बराबर समझी जाती है। माता-पिता पुत्र को अपनी सम्पत्ति के रूप में देखते हैं, परन्तु पुत्री उनके लिए बोझ होती है। यही कारण है कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति है। कन्या भ्रूण हत्या से समाज में लिंग अनुपात में असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में तो अविवाहित युवकों की संख्या बहुत बढ़ गई है। इन राज्यों में विवाह के लिए लड़कियाँ दूसरे राज्यों से लाई जाने लगी है।

    अभियान का लक्ष्य समाज से कन्या भ्रूण हत्या की कुप्रवृत्ति को मिटाने के लिए केन्द्र सरकार ने 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने लड़कियों को बचाने, उनकी सुरक्षा करने और उन्हें शिक्षित करने के लिए निम्न बाल लिंगानुपात वाले 100 जिलों में इस कुरीति को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। यह कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय,
    स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय और मानव संसाधन विकास मन्त्रालय की संयुक्त पहल है। लिंगानुपात को सन्तुलित करने के लिए अब तक कई सरकारी अभियान चलाए जा चुके हैं, परन्तु उनके कोई उत्साहजनक परिणाम सामने नहीं आए।

    वास्तव में, सत्य तो यह है कि इस सन्दर्भ में सरकार तब तक विशेष कुछ नहीं कर सकती है, जब तक समाज अपनी मानसिकता न बदले। जब तक हम और आप ही बेटियों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, तब तक एक सन्तुलित समाज की संरचना असम्भव है। बेटियाँ समाज, परिवार और देश का गौरव होती है और इतिहास सा है उन्होंने बार-बार इस बात को सत्य सिद्ध किया है। अतः हमें कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति को त्यागकर बेटियों को उनका अधिकार देना होगा।

    "हर लड़ाई जीतकर दिखाऊँगी

    मैं अग्नि में जलकर भी जी जाऊँगी चन्द लोगों की पुकार सुन ली

    मेरी पुकार न सुनी

    मैं बोझ नहीं भविष्य हूँ बेटा नहीं पर बेटी हूँ।

    Aryan Pandey 

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