जो हम हैं वो संस्कार है जो हमारे पास है वो सभ्यता है

सभ्यता शरीर है तो संस्कृति आत्मा है,
सभ्यता आपके भौतिक अन्वेषण की पीड़ा का परीणाम है,
वही संस्कृति आपकी बुद्धिमता का प्रतीफल है
वर्तमान सभ्यता का सृजन अतीत की परम्पराओं, संस्कृति,और कृत्यों के सृजन से 
हुआ है आज हम वो वस्त्र पहनते हैं या भाषा का प्रयोग करते हैं उसकी जड़े अतीत 
में देखी जा सकती है एक प्रकार से मानव सभ्यता सामाजिक और सांस्कृतिक के विकास 
का उन्नत अवस्था है जो मानवीय संस्कृति के विभिन्न लक्षणॊं का भौतिक परिदृश्य 
है संस्कृति एक सामजिक समूह या वर्ग की सामुहिक बौधिक उपलब्धि है जिसके 
सानिध्य में एक सभ्यता का उद्भव और बिकास होता है दरअसल सभ्यता और संस्कृति एक 
दूसरे से अंतर्संबंध है जो एक समुदाय या भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्ट पहचान को 
निरूपित करती है इस परिप्रेक्ष्य में कुछ प्रश्न स्वाभाविक ही है जैसे सभ्यता 
और संस्कृति क्या है? इनका अंतर्संबंध कैसा है?वर्तमान मे इनका स्वरूप किस 
प्रकार परिवर्तन हो रहा है? आधुनिक जीवन मे इनका क्या भूमिका है ?
संस्कृति एक समूह के विचार, व्यवहार और कृत्य का संयोजन है एक संस्कृति ही 
समाज के विचारधारा को तय करती है जैसे भारतीय संस्कृति की विचारधारा समावेशिता 
की है इसके आधार पर वसुधैव कुटुम्बकम के विचार का अनुसरण करते हुए हमने ना 
सिर्फ दुनिया भर के शरणार्थियों को आसरा दिया हैं बल्कि उनकी उनकी सभ्यता को 
समावेशीत भी किया है इसी तरह हमारे व्यवहार का निर्धारण संस्कृति से होता है 
जैसे सनातन धर्म या हिंदू धर्म मे धर्म परिवर्तन को लेकर उग्रता का भाव नहीं 
है जबकि पश्चिम के कुछ धर्मों में धर्म परिवर्तन के प्रति उग्र का व्यवहार 
देखा जा सकता है इन्हीं विचारों और व्यवहारों के आधार पर एक समूह के कृत्य 
प्रभावित होते हैं एक संस्कृति की इन्हीं विशेषताओं के आधार पर सभ्यता   
संस्कृतिक विशेषताओं के समावेशन से निर्मित मानव समाज के उन्नत, 
सामाजिक ,भौतिक और प्रशासनिक स्वरूप को सभ्यता कहा जाता है एक सभ्यता की 
उन्नती राष्ट्र, समुदाय या क्षेत्र के संस्कृतिक मूल्यों पर निर्भर करती है 
इसी संदर्भ मे देखा जा सकता है कि विश्व सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यताओ जैसे- 
सिंधु घाटी और Mesopotamia का विकास भी क्रमशः सिंधु नदी और और रोमन टाइग्रीस 
नदी के अफवाह क्षेत्र की संस्कृतियों से हुआ था इसी तरह विविध काल खण्डों में 
विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में ग्रीक रोमन और यहूदी, क्रिस्चियन संस्कृतियों 
के आधार पर सभ्यताओं के उदय हुआ था आज विश्व की ही अधिकांश प्राचीन सभ्यताओं 
का को खो चुके है किन्तु अधिक समावेशी और सिंधु सभ्यता की विशेषताएं आज भी 
सिंधु गंगा के मैदान में देखी जा सकती है इसी संदर्भ मे पूर्व प्रधानमंत्री 
श्री अटल बिहारी बाजपेई जी ने कहा है-
                दुनिया का इतिहास पूछता
                 रोम कहा यूनान कहा है
                 घर घर मे शुभ अग्नि जलाता
                 वह उन्नत ईरान कहा
                द्वीप बुझे पश्चिम गगन के
                व्याप्त हुआ बर्बर अँधियारा
                किन्तु चिर कर तम की छाती
                चमका हिन्दुस्तान हमारा
इस तरह एक मजबूत संस्कृतिक आधार सभ्यता को नष्ट या विखण्डित होने से संरक्षण 
प्रदान करता है एक सभ्यता का अस्तित्व संस्कृति पर पुर्णतः निर्भर होता है 
जबकि संस्कृति की निरंतरता सभ्यता पर आश्रित नहीं है आज भी सिंधु सभ्यता की कई 
संस्कृतिक प्रर्थएँ भारतीय समाज में देखी जा सकती है जैसे- स्त्रियों द्वारा 
आभूषण धारण करना, पशुपति शिव जी की पूजा करना आदि सभ्यता संस्कृतिरुपी सध्या 
की प्राप्ति का एक साधन मात्र है जिसका ध्येय संस्कृति मूल्यों को स्थापित और 
प्रसारित करना है संस्कृति एक आन्तरिक मुल्य या विशेषता है जिसकी ब्रह्म 
अभिव्यक्ति सभ्यता है संस्कृति एक अमूर्त प्रकिया है जिसकी मूर� एक अमूर्त 
प्रकिया है जिसकी मूर्त अभिव्यक्ति सभ्यता की विभिन्न संरचनात्मक गतिविधियों 
से होती हैं
                                               --लक्ष्य अवस्थी
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