दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च |
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ||
हे पृथानन्दन ! दम्भ करना, घमण्ड करना, अभिमान करना, क्रोध करना, कठोरता रखना
और अविवेक का होना ये सभी आसुरी सम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं |
वास्तव में यही भेद है वास्तविक ग्यानी व्यक्ति में और ज्ञान के मद में चूर एक
अपने ज्ञान का अभिमान नहीं होता | यदि उसमें ज्ञान का अभिमान आ गया तो समझना
चाहिए कि अब उसके पतन का समय आ गया है और उनकी समस्त उपलब्धियाँ, समस्त
सिद्धियाँ और सारी मान प्रतिष्ठा का अब पराभव होने जा रहा है |
अहंकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। अहंकार से ज्ञान का नाश हो जाता
है। अहंकार होने से मनुष्य के सब काम बिगड़ जाते हैं। भगवान कण-कण में व्याप्त
है। धर्मशास्त्रों के श्रवण, अध्ययन एवं मनन करने से मानव मात्र के मन में
एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सद्भावना एवं मर्यादा का उदय होता है। हमारे
धर्मग्रंथों में जीवमात्र के प्रति दुर्विचारों को पाप कहा है और जो दूसरे का
हित करता है, वही सबसे बड़ा धर्म है। हमें कभी किसी को नहीं सताना चाहिए। और
सर्व सुख के लिए कार्य करते रहना चाहिए।धन, मित्र, स्त्री तथा पृथ्वी के समस्त
भोग आदि तो बार-बार मिलते हैं, किन्तु मनुष्य शरीर बार-बार जीव को नहीं मिलता।
अतः मनुष्य को कुछ न कुछ सत्कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य वही है, जिसमें
विवेक, संयम, दान-शीलता, शील, दया और धर्म में प्रीति हो। संसार में सर्वमान्य
यदि कोई है तो वह है मृत्यु। दुनिया में जो जन्मा है, वह एक न एक दिन अवश्य
मरेगा। सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक मृत्यु से कोई भी नहीं बच पाया।
यदि अहंकार का नाश नहीं किया गया तो वह व्यक्ति का और उसके ज्ञान का नाश कर
देता है क्योंकि वह व्यक्ति की विनम्रता समाप्त करके उसे पथभ्रष्ट कर देता है
| ऐसा व्यक्ति किसी का भी अपमान कर सकता है, अकारण ही क्रोध और ईर्ष्या की
भावना उसके मन में आ सकती हैं और वह स्वयं अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार
सकता है |
इसलिए ज्ञानी व्यक्ति को स्वाभिमानी तो होना चाहिए लेकिन अहंकारी नहीं |हम सन
ज्ञानार्जन करके स्वाभिमानी बनें और अहंकार के मद से दूर रहें यही कामना है…
-piyush singh
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