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    ग्रामीण समाज की समस्याएं

    भारत गाँवों का देश है। प्रत्येक बड़े नगर के साथ सैकड़ों गाँव लगे हैं। भारत 
    की लगभग 72 प्रतिशत जनता आज भी गाँवों में निवास, करती है। गाँवों के निवासी 
    ही सम्पूर्ण देशवासियों के लिए अन्न, वस्त्र, फल, दूध, चीनी और सब्जियाँ आदि 
    जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इस कारण इस देश में ग्रामों 
    का विशेष महत्त्व है। देश की समृद्धि तथा विकास गाँवों के विकास पर आधारित है। 
    गाँवों की उन्नति में ही देश की उन्नति है।
    यह आश्चर्य की बात है कि गाँव शान्ति और स्वास्थ्य के केन्द्र हैं किन्तु 
    ग्राम के निवासी ग्राम छोड़कर शहरों की ओर दौड़ रहे हैं। इसका एकमात्र कारण 
    है-ग्राम्य जीवन की जटिल समस्याएँ। यह कैसी विडम्बना है कि संसार को 
    अन्न-वस्त्र देने वाला किसान स्वयं भूखा और नंगा रहता है। गाँव के निवासी अनेक 
    कठिनाइयों से पीड़ित हैं, अभावों से संतप्त हैं। गाँवों की अनेक समस्याएँ हैं 
    जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
    ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्य समस्या, प्राप्ति और रोजगार की दृष्टि से कृषि पर 
    बहुत अधिक निर्भर रहना है। वहाँ कुछ ऐसे निर्माण संयंत्रों की आवश्यकता है, जो 
    कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण करके उनका सही मूल्य दिलवा सकें।
    सातवें और आठवें दशक में हुए चीन के औद्योगीकीकरण का उद्देश्य टाऊनशिप और 
    ग्रामीण उद्यमों को बढ़ावा देना था। वहाँ गाँव-गाँव में छोटे-छोटे उद्योग चल 
    रहे हैं।
    इस अनुभव का भारत में भी अनुसरण किया जा सकता है। इसे विस्तृत करते हुए 
    सॉफ्टवेयर और व्यापार में आऊटसोर्सिंग की सेवाओं तक ले जाया जा सकता है। 
    तमिलनाडु और गुजरात के कुछ गाँव सफलता की कहानी कहते हैं। परन्तु इनकी संख्या 
    बहुत कम है।
    ग्रामीण उद्यमिता के विकास के लिए बिजली की अबाध्य सुविधा, सुरक्षित सड़कें, 
    इंटरनेट संपर्क और शिक्षा के स्तर को ठीक करने की जरूरत है। अभी तक गैर कृषि 
    कर्म के रूप में ईंट भट्टों, पत्थर-खदानों, खेतों में मरम्मत, निर्माण आदि में 
    ग्रामीण लोग काम करते हैं। परन्तु सुविधाएं बढ़ने के साथ उन्हें आय के कई स्रोत 
    मिल जाएंगे।
    खेती के अलावा अन्य रोजगारों के उत्पन्न होने से अंततः खेती करने वालों को ही 
    लाभ होगा। अन्य रोजगार मिलने से कुछ लोग कृषि-कर्म को छोड़ देंगे। लेकिन कृषि 
    में वास्तविक रूचि रखन वाले लोग, इसमें निवेश बढ़ाकर उत्पादकता में वृद्धि कर 
    सकेंगे।
    अगर ऐसा हो सके, तो कृषि का काम मजबूरी का पेशा नहीं रह जाएगा। इसके बाद ही 
    कृषि, विशेषज्ञता आधारित होकर लाभ का व्यवसाय बन पाएगी। यही भारतीय कृषि के 
    पुनरुत्थान की दिशा है।
                                         - Gudiya kumari

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