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    लिपट कर रो पड़े वो बेटियों से अपनी हालातों पे...जो कहते थे कभी विरासत के लिए बेटा जरूरी है??

    बदलता समय मगरुर पुरातन पंथी सोच रखने वालो के लिए उदाहरण बनता जा रहा है!मतलब परस्ती के चल रहे तूफान में बेसहारा हुआ इन्सान दर्द की दरिया में किनारा पाने के लिए जब अपनों को तलाशता है तब किनारा पाने के लिए सहारा तो दूर -निराशा के भंवर जाल में फंसा देखकर अपने सबसे पहले दूर हो जाते हैं!और दूर दूर तक अपना कोई नहीं दिखता!जीवन के आखरी पहर में आए जलजला में सब कुछ खत्म हो जाता है? पश्चाताप का आंसू रोता दर दर की ठोकरें खाता विधाता के बिधान को इन्सान कोसता है! बार बार सोचता‌ है काश इतनी हिम्मत इतनी मेहनत बेटियों की ज़िन्दगी संवारने में किए होते तो शायद आज से सहारा‌ होकर दर्द के आंसू नहीं रोते !उपेक्षा के धरातल पर स्वेक्षा से पराया कर देने का रिवाज आज अहमियत के साथ याद आने लगा है!परिवर्तन के प्रभाव में बदल रहा अपनों का स्वभाव घाव पैदा कर रहा है?।दशकों दर्द सहकर सुख के समन्दर में किलोल कराने के लिए सब कुछ लुटाने वाला आखरी सफर के बिराने मन्जिल पर जब रहम दिल की तलास करता है तब तिल तिल मरने के सिवा कोई नजर नहीं आता! जब ज़िन्दगी चाह की अथाह वेदना के शानिध्य में भविष्य के भयावह अन्धेरी रात में अपनों की तलाश करता तब नि:स्वार्थ अपनत्व का भावार्थ लिए सामने मुस्कुराती बेटी नजर आती है?।जिसकी अश्रु धारा के बहाव में गुजरे पलों के लगाव का आभास बधवास बना देता है।वह  बेटा जिसके लिए दर दर ठोकरें जीवन भर खाकर सुखमय जीवन के लिए मठ मन्दिर देसी देवता के दर पर करता रहा फ़रियाद वहीं औलाद अकेला छोड़कर निकल गया!उस घोंसले को छोड़कर चला गया जहां के दाना पानी से पलबढकर आसमानी उड़ान पर है।-------??
    पाले हुए सब परिंदे उड़ गए धीरे धीरे सब छोड़कर!!
    बांगवा है अब अकेला उम्र के इस मोड़ पर!!
    बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ ही नारी सशक्तिकरण अभियान हिन्दुस्तान के सम्विधान का अहम किरदार बन गया है।हर तरफ शोर है! बेटीयां है तो घर में प्रकाश है चहुं ओर अजोर है!अब सन्तान शब्द की परिभाषा बदल गई! मां बाप की अभिलाषा बदल गई? दिलाशा देने वालो मे आखरी सफर की परिभाषा बदल गई! जब ठोकरें नसीब बन गई तब पराए घर में सिसक सिसक कर आहे आहें भरने वाली बेटी करीब हो गई! कितनी बिडम्बना भरा समाज है।सब कुछ लुटा कर जिस औलाद को काबिल बनाया वहीं बेगाना बना दिया!।जिसको बेगाना बना दिया गया उसी ने की परवरिश उसी के हाथ दाना पानी हुआ नसीब!वही आखरी सफर का साथी बनी। मां की कोख से ही मौत से जंग लड़कर दुनियां में तमाम विसंगतियों को झेलकर अपनो के ही संग खेलकर पराया हो जाने का दंश झेलने वाली बीटीया हर कदम पर अपनों के लिए तड़पती हैं! सिसकती है? आज समाज जागरूक हो गया है।सरकार ने भी बराबरी का हक अदा किया है!आधुनिकता के आवरण में जब बेसहारा बेचारा बनकर रह जा रहा है इन्सान उनके दर्द में अहम रोल निभा रही हैं वह सन्तान जिसको पराए घर की इज्जत बनाकर बिदा कर दिया गया था?अनाथ आश्रम बृद्धा आश्रमों की एक बार सैर कर तो देखिए हकीकत जानकर पैरों तले जमीन खिसक जायेगी।वह मां बाप बहुत भाग्यशाली हैं जिनकी बेटीयां है।शक्ति स्वरूपा प्रकृति की अनुपम वरदान  स्वाभिमान' मान 'सम्मान' अभिमान' की देवी जिसको सहनशीलता सद्गुण सम्बृधि का मिला हुआ है वरदान? जिनके नसीब में है वह बहुत भाग्यशाली हैं।विकृत समाज इनका भी अपमान करने में नहीं चूकता लेकिन आज इनके योगदान के बिना कोई भी कार्य सम्भव नहीं है कहा गया है यत्र पूज्यंते नारी तंत्र रमन्ते देवता? पुरातन पंथी बिचारी धारा को छोड़कर समय की पहचान कर जिसने अपने खानदान की झूठी शान से नाता तोड़कर सम्हल गया वह सुखी इन्सान बनकर समाज में आज सुख से परवरिश पा रहा है। 

    :- जगदीश सिंह सम्पादक

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