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    अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस, वृद्ध जन संरक्षण

    दादा_दादी, नाना_नानी,
    से घर _द्वार दमकता है।
    नाती_पोतों की किलकारी,
    से घर, घर सा लगता है।।

    माता_पिता न जाने कितने,
    देवी_देव मनाते हैं ?
    संतानों की सुख_सुविधा हित,
    कितना कष्ट उठाते हैं ?

    खुद सो जाते गीले में,
    बच्चों को सूखा बिस्तर है।
    गोदी, कंधा, पीठ , सवारी,
    एक, एक से बढ़कर है।।

    उंगली पकड़_पकड़ चलवाते,
    लिखना, पढ़ना सिखलाते।
    विद्यालय, कॉलेज सब जगह,
    शिक्षा_दीक्षा,दिलवाते।।

    तिथि_त्योहारों मे जब भी,
    कुछ भी पकवान बनाते हैं।
     खिला_पिलाकर, बच्चों को,
    फिर बचा_कुचा खुद खाते हैं।।

    खान_पान मे, रहन_सहन मे,
    हर संभव कोशिश करते।
    खुद रह लेते हैं अभाव मे,
    संतति के हित जुट पड़ते।।

    पढ़_लिखकर कुछ बन जाते,
    तब शादी_ब्याह रचाते हैं।
    बेटों के पसंद की बहुएं,
    खुशी_खुशी घर लाते हैं।।

    बेटी को भी योग्य बनाकर,
    उत्तम ब्याह रचाते हैं।
    माता_पिता यथा संभव,
    सब अपना फर्ज निभाते है।।

    कुछ दिन ठीक_ठाक सब रहता,
    फिर दरार बढ़ती जाती।
    वृद्धाश्रम मे रहने तक की,
    फिर मजबूरी बन जाती।।

    बेटी,पिता और माता का ,
    ख्याल हमेशा रखती है।
    लेकिन सास_ससुर की वह भी,
    सदा उपेक्षा करती है।।

    जोड़_जोड़ कण, तिल_तिल चुन,
    जो घर_परिवार बसाते हैं,
    एक दिवस ऐसा भी आता,
    वही विमुख हो जाते हैं।।

     ये बहुएं, बेटे, कलयुग के,
    करना क्या था, क्या करते ?
    पालन, पोषण, सृजन किया,
    उन को ही घर, बाहर करते।

     सोचो ! पिता और माता,
    सब खोकर के क्या पाते हैं ?
    एकाकी पन और उपेक्षा,
    कितना सब सह जाते हैं ?

    देख दुर्दशा वृद्धजनों की,
    मानवता कंपित होती।
    सूरज, अंबर,चांद, सितारे,
    धरती फफक_फफक रोती।।

    वृद्ध जनों को जो अपने,
    घर में रखने तैयार नहीं।
    उन्हे उचित है जालिम कहना,
    मानव के हकदार नही।।

    वृद्ध जनों के प्यार, त्याग का,
    कोटि, कोटि अभिवादन है।
    वृद्धों के चरणों का पानी,
    गंगा जल सा पावन है।।

    कितने कष्ट, और संकट सह,
    घर, परिवार सजाते हैं।
    जो करता है वही जानता,
    कितनी ठोकर खाते हैं।।

    माता और पिता का रिश्ता,
    देवों से भी ऊंचा है।
    करो नहीं अपमानित उनको,
    जिनने तुमको सींचा है।।

    आओ अपनी भूल सुधारें,
    शाश्वत का आह्वान करें।
    नहीं प्रताड़ित हों बुजुर्ग जन,
    संकल्पित अभियान करें।।

    मानव का जीवन अमूल्य है,
    हर पल इसका ध्यान करें।
    सभी वृद्ध जन पूज्य हमारे,
    अभिनंदन, सम्मान करें।

    :-डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल"

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