समय के सागर में देखते ही देखते न जाने कितनी वक्त की कश्तियां गर्त हो गई! पता ही नहीं चला कब बदलाव के बादल झूमकर बरसे और सब कुछ दर बदर कर दिया! जो कल के लिए जरुरी था आज इतिहास बन गया।?समाज बदला अल्फ़ाज़ बदला रहन सहन रिवाज बदला आज सब बदल गया? गांव से लेकर शहर तक सब कुछ बदल रहा है! न गांवों में खेती किसानी के पुराने औजार है!पहले जैसे मोहब्बत और आपस में प्यार है! न अब नाता रिश्ता पहले जैसा है न अब कहीं संयुक्त परिवार है! न पुरानी खपरैल की मकाने है! न बैलों की जोड़ी है! न दरवाजे पर रम्मभाती गायों के झुन्ड है! न गांव के सिवान में अब पानी के कून्ड है!न अब बाग बगीचों की हरियाली है! न पहले जैसा दशहरा है!न पहले जैसी दीवाली है? गांवों से निकल कर लोग शहर में चले गए घर के घर खाली है! न अब कोयल कूकत है! न पपिहा की बोली है न पटरी कलम दवात लेकर दिखती कहीं बच्चों की टोली है!अब न कहीं पिंपल के छांव मे गुल्ली डन्डा का खेल है न लोगों का आपस में मेल है!गर्मी की दोपहरी में डीम डीम डमरू की आवाज पर मदारी को देखने वाले बच्चो का कोलाहल!बाई स्कोप पर बजने वाले फिल्मी गीत संगीत के साथ ही फील्म स्टारों के पोस्टर को देखने वालों की हलचल अब कहीं नहीं दिखता!अब हर दरवाजे पर खड़ी सफारी है क्या जमाना आ गया खेत खलिहान बेचकर बन गया आधा गांव जुआरी है। सिवान का सिवान गन्ना के खेत मे जंगली जानवरो की रात में भयानक आवाज!दरवाजे दरवाजे पर कार्तिक मास की एकादशी के बाद से गन्ने की पेराई, सोनी सुगन्ध बिखेरती गुड कि सुगन्ध! सुबह सुबह घर गृहस्थी की हलचल! जाड़े के दिनों आग की ब्यवस्था जहां सारा मुहल्ला देर रात तक बैठकर अपना दर्द बांट कर सकूं महसूस करता था! अब कुछ भी नहीं है?।अब तो न गांवों में चिट्ठी लेकर डाकीया आता है! न कागा मुंडेर पर बैठकर सगुन उचारता है!रात को जागते रहो जागते रहो की चौकीदार की आवाज भी नहीं सुनाई देती! पुलिस की गस्त खत्म! दरोगा जी रात के सन्नाटे में बुलेट की दम दम की दहशत भरी आवाज खत्म?अब तो पुलिस की नौकरी भी बस बन गई है रस्म! सब कुछ आधुनिक हो गया! गांव मोहल्ला में सुबह शाम सब काम निपटा कर परदेशियो को चिट्ठी लिखने पढ़ने वाचने के लिए जो भीड़ होती थी वह खत्म हो गई! रेडियो पर रमई काका तथा जुगानी चाचा चुहल बाजी का दौर कब का चला गया? घर घर रेडियो जो शान में ईजाफा करती थी अब कल की बात बनकर रह गई! अब तो चिट्ठी से नहीं मोबाईल से लोगों के चेहरे पर स्माइल नजर आती है!!गांव के पोस्टमैन', पोस्ट आफिस बेकार हो गया! अब न परदेशियो की महीने में बाहर से आने वाले पैसा का इन्तजार है!न कोई अब जमींदार है।सबके कंक्रीट के बन गये मकान है! लेकिन न आपस में भाईचारा है न कोई घर का दुलारा है। शाम होते ही सारा गांव घरों के भीतर टीबी पर बैठ जाता है! दरवाजा पर शाम को गांवों में बैठने का रिवाज खत्म होगया।न पहले जैसी गृहस्थी न पहले जैसी मस्ती है।पूरी तरह भारतीय संस्कृति का लोप हो गया!सुबह सुबह आटा चक्की की घर्र घर्र के साथ भजन गाती महिलाओं का समूह!घर घर कीर्तन! घरों की शोभा बढ़ाते तांबे पीतल के साथ ही वजनदार फूल के वर्तन!,कुछ भी नहीं दिखताबचा गजब का हुआ परिवर्तन! शादी ब सांस में नौटंकी का नाच खेतों में सतमेरवन का अनाज ,बाग बगीचों में झूलुवा पर सावनी कजरी की गीत खेतों में रोपाई के समय मजदूरों के द्वारा गाई जाने वाली गीत मस्त मस्त सावन की फुहार हहल्लड बाजी वाला फगुआ नाग पंचमी का त्योहार कुछ भी तो अब नहीं दिखता,गृहस्थी से गायब हो गया मोटा अनाज घर घर सुगर के मरीज खत्म हो गई ऊच नीच की तमीज एकाकी जीवन आज के जमाने का फलसफा बन गया है।गांवों के साथ साथ शहर का भी मिजाज बदल गया! आधुनिकता के अन्धड ने भारतीय संस्कृति का पंचनामा कर दिया! आज फैसन परस्ती की चपेट में आकर लाज लिहाज खत्म हो गया!बिकाऊ के नाम पर विनाश का जो खाका तैयार हो रहा है वह पुरातन संस्कृति को जड़ से ही खत्म कर पाश्चात्य सभ्यता की विकृत वस्था में आधुनिक समाज का समर्पण कर रहा है!महज दो दशक में विकाश के नाम पर विनाश का जो दहशत दिखाई दे रहा है अगर इसी तरह नीर्वाध गति से चलता रहा तो बस कुछ सालों में ही अतीत का इतिहास बिखराव की बहती प्रदुषित नदी के कटान में हिन्दुस्तान को अलविदा कह जायेगा। रह जायेगा सिसकता दम तोड़ता भारत!
जयहिंद🙏🏾🙏🏾
जगदीश सिंह सम्पादक