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    जीतो व्यवहार से

    बोलो तो प्यार से  जीतो व्यवहार से
    जीवन पर संकट है  व्यर्थ बढ़े रार से।

    यह मनुष्य जीवन है  इसका कुछ बंधन है
    सत्य के उपासक जो  उनका अभिनंदन है
    फूल पौध आशा के  काट मत कटार से
    जीवन पर संकट है  व्यर्थ बढ़े रार से ।

    कटुता के दंश से  बुरे भाव अंश से
    संरक्षित करना है  असुरों के वंश से
    सबका भला मांगो  सच्चे सरकार से
    जीवन का संकट है  व्यर्थ बढ़े रार से।

    प्रेम  - प्रीत साधना  ईश्वर आराधना
    बंधन मन भाए तो  उनसे ही बांधना
    सांसों को संबल है  उनके उपकार से
    जीवन का संकट है व्यर्थ बढ़े रार से ।

    रीते घट क्यों भला  बढ़ता है फासला
    निज हित के पाथ पर  मानुष जब तू चला
    कौन आ सका बोलो  जाकर उस पार से
    जीवन का संकट है  व्यर्थ बढ़े रार से ।

    विजय कल्याणी तिवारी,बिलासपुर छग

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