झूठ नही कह सकते हम तो, इसीलिए बस मौन हो गए।
रिश्तों में विश्वास बना हो,
आम आदमी ख़ास बना हो।
जीवन में संकट के क्षण में,
इक - दूजे की आस बना हो।
परिपाटी जीवित रखने में, हम सबके ही औन हो गए।
झूठ नही कह सकते हम तो, इसीलिए बस मौन हो गए।
सब आपस में यारी रक्खें,
बातें ना अख़बारी रक्खें।
जब-तक मंजिल ना पा जाएं,
तब-तक चलना जारी रक्खें।
साथ तुम्हारा ना मिलने से, हम पूरे थे पौन हो गए।
झूठ नही कह सकते हम तो, इसीलिए बस मौन हो गए।
चादर मैली ना हो जाए,
दर-दर फैली ना हो जाए।
सुनने - कहने में शर्मिंदा,
भाषा - शैली ना हो जाए।
कल तक हमें जानते थे सब, आज किंतु हम कौन हो गए?
झूठ नही कह सकते हम तो, इसीलिए बस मौन हो गए।
जीवन की हर हार- जीत से,
कुछ लोगों के वैर- प्रीत से।
विचलित कभी नहीं होना तुम,
पावस, आतप और शीत से।
शहरों की आपा-धापी में, शांत गाँव का भौन हो गए।
झूठ नही कह सकते हम तो, इसीलिए बस मौन हो गए।
(औन- मददगार, सहायक, भौन- घर, भवन, पौन- तीन चौथाई, एक में से चौथाई कम, आतप- गर्मी, पावस- वर्षा)
अवनीश त्रिवेदी 'अभय'