गुनाहगार सच

जगत में मैं रहूँ ना रहूँ ,
       पर ये फ़साना तो रहेगा ही ,
सब कुछ चला जाये यहाँ से ,
       लेकिन ये जमाना तो रहेगा ही ,
रहना तो किसी को नहीं है ,
       पर किये कर्म की गवाही होता है ,
सत्य कभी मरता नहीं है , 
        झूठ की कोताही होता ही है ,
लोग जो कहे अमर नहीं कोई ,
        पर अमर वाणी अभी भी है ,
राजा गये महाराजा संत फ़क़ीर ,
        उनकी गवाही अभी भी है ,
लड़ रहे हैँ आज एक दूजे से ,
        हम सही हैँ तो हम सही ,
गलत है कौन यहाँ पर ,
        पता कौन कैसे करे कभी ,
हम हम का ही बोल यहाँ पर ,
        हम हम का ही है ललकार ,
ताने दिये ही फिरते हैँ सभी ,
       मिलता है निष्कासन - फटकार ,
समझ समझ कर समझ रहे हैँ ,
       गलत गलत गलत नहीं कोई ,
ऊँगुली पर ढूंढ़न जो चलन है ,
       सत्य सत्य जो है वही गलत होई ,
काशी मथुरा पे मत जाओ यारों ,
       नूरे ईलाही हर दिल में मिलेगा ,
झाँकना है घट भीतर उस रब को ,
       कांकर पत्थर नहीं प्रेम में मिलेगा
कहता खड़ा है तो कोई पड़ा है,
      अड़ा खड़ा में झगड़ा है क्यों ?
प्रेम तो ना अड़ा है ना ही पड़ा है ,
       हँसी आती अड़ा पड़ा रगड़ा क्यों
सभी तो हैँ होश में यहाँ पर ,
       एक ठहरा मैं ही हूँ बेहोश ,
सच बोलना भी गुनाह यहाँ पर ,
       मौन रहकर बिल्कुल हो खामोश !

                                    -प्रमोद कुमार सिन्हा

               
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