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    सचिन गोयल की कलम से

    शीर्षक-तोड़े हैं
    विधा-कविता
    बहर- बे-बहर/बे-मीटर
    12-01-2024

    पानी की रफ़्तार ने पत्थर तोड़े हैं
    तुम ना जानों, कितने बेहतर तोड़े हैं

    आँखें हैं अश्क़ों का पीहर,झीलों का
    पलकों के बाँध इन्होंने अक्सर तोड़े हैं

    कौन है ऐसा चोट सहे और रोये ना
    पानी ने तो, बहते ही, घर तोड़े हैं

    प्याला भर दोगे तो,वो तो छलकेगा
    प्याले ख़ाली अक्सर भरकर तोड़े हैं

    तू कुछ ज्यादा टूटा लगता है "सचिन"
    सबको तोड़ा शायद कमतर तोड़े हैं

    © सचिन गोयल
    गन्नौर शहर,सोनीपत
    Insta&facebook @
    Burning_tears_797



    मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सका
    हर कोई बज़्म में तेरा तलबगार निकला

    मैं खुशियां मनाता फ़िर रहा था लेकिन
    गली कूचों का हर जर्रा तेरा यार निकला

    मैं समझता था तुझे हुस्न की पाक मूरत
    तेरा हुस्न तो रक़ीबों का कर्जदार निकला

    शर्म आती है अपनी एक तरफ़ा चाहत पर
    एक गैरतमंद ख़ातिर मैं वफ़ादार निकला

    वफ़ा,तड़प,सिसक सबने घेर लिया मुझको
    लगता है मुद्दतों बाद सबका गुबार निकला

    © सचिन गोयल
    गन्नौर शहर,सोनीपत, हरियाणा
    Insta,, burning_tears_797



    हालातों का मारा हूँ मैं, बाकी कोई बात नहीं है
    शादीशुदा कुँवारा हूँ मैं, बाकी कोई बात नहीं है

    बीच भँवर से जिंदा लौटा,लेकिन फूटी किस्मत
    डूबा हुआ किनारा हूँ मैं,बाकी कोई बात नहीं है

    नफ़रत दौड़ रही साँसों में,क्या से क्या कर जाऊँ
    जलता एक अँगारा हूँ मैं,बाकी कोई बात नहीं है

    मेरे कर्मों का ही फ़ल है, मेरे अपने रूठ गए हैं
    जीती बाज़ी हारा हूँ मैं, बाकी कोई बात नहीं है

    जीना होगा जैसे तैसे, साँसें जितनी बाकी होंगी
    सचिन सा आवारा हूँ मैं,बाकी कोई बात नहीं है

    © सचिन गोयल
    गन्नौर शहर,सोनीपत
    Insta@,
    Burning_tears_797

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