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    हिंदी और हम

    हिंदी और हम
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    सालों भर मनाए जाते हैं
    कई दिवस, कई समारोह।
    कुछ साज-सजावट
    कुछ मेहमानों का आगमन
    कुछ स्टेज शो।
    फीता काट कर, केक काट कर,
    या फिर आतिशबाजी करके
    जश्न मनाते हैं।
    मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि,
    सम्मानित व्यक्ति,
    मंचाशीन होकर
    देते हैं भाषण।
    फूलों की माला पहनाकर
    बुक्कें देकर ताली बजाकर
    करते हैं स्वागत
    सम्मानित आगंतुकों का।
    कुछ गाना-बजाना भी होता है
    और फिर नाश्ता-पानी,
    और कुछ पुरस्कार वितरण
    तथा अध्यक्षीय भाषण से
    होता है समारोह का समापन।
    हिंदी दिवस आया
    और मैंने सोचा
    इसे भी धुम-धाम से
    मनाया चारों ओर जाएगा।
    पर, अफ़सोस,
    नहीं दिखा कहीं भी
    जश्न का माहौल
    नहीं मना हिंदी दिवस।
    कार्यालयों में हिंदी दिवस
    और हिंदी पखवाड़े
    का बोर्ड लगाकर
    मना लिया गया हिंदी दिवस।
    जहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था
    " आप हिंदी का प्रयोग करेंगे
    तो हमें खुशी होगी" वही
    हिंदी में प्रपत्र देने पर कहा गया
    "अंग्रेजी के बड़े-बड़े अक्षरों में
    लिखकर लाए"।
    क्या यही है हिंदुस्तान की हिंदी
    और हिंदी दिवस?

    --: रचनाकार :--
    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    (शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार
    (अप्रकाशित, मौलिक और स्वरचित रचना)

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