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    गणेश वंदना _

    गणेश वंदना _

    हे जगन्नियंता, जग नायक,
    हे जगदा धार प्रणाम तुम्हे ।
    हे एक दंत, हे ज्ञान वंत,
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    हो खल_गंजन,तुम दुःख_भंजनं,
    हो जन_रंजन, अभिराम तुम्हीं ।
    हो निराकार तुम निर्गुण हो,
    साकार रूप निष्काम तुम्ही।।
    तुम,काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह,
    छल, दंभ, द्वेष, दुःख नाशी हो ।
    तुम अन्तर्यामी, जग स्वामी,
    कण_कण,घट_घट में बासी हो ।। 
    हे लम्बोदर, हे विघनेश्वर,
    हे परम उदार प्रणाम तुम्हे ।
    हे एक दंत, हे ज्ञान वंत,
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    तुम भुव पति,भव पति,भुवन पती,
    हो भरग , ईश, ईशान भी हो ।
    हो भूत, भूत पति,भवापती,
    तुम भक्त_भरण,भगवान भी हो ।।
    महिमा मय हो, मंगल मय हो,
    मृत्युञ्जय हो, शत्रुंजय हो ।
    हे विघ्न विनाशक, गण नायक,
    तेरी जय हो, तेरी जय हो ।।
    हे शोक नसावन, भय _भाजन,
    जीवन आधार प्रणाम तुम्हे ।
    हे एक दंत हे ज्ञान वंत,!
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    तुम ही जगती के संचालक,
    माया पति हो, महिमा कर हो ।
    भक्तों के पालनहार हो तुम,
    करुणा कर के, करुणा कर हो।।
    तुम सत्यम, शिवम्, सुंदरम का,
    सारांश तत्व दिखलाते हो।
    तुम सत्य, चित्त, आनंद रूप,
    का सत् आभास कराते हो ।।
    हे रिद्धि_सिद्धि _पति, दया वान,
    जीवन पतवार प्रणाम तुम्हे।
    हे एक दंत, हे ज्ञान वंत,
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    सर्वत्र अनीति, अनय फैली,
    पापो ने डाला डेरा है।
    भय, क्लेश, कलह, पाखंड, छद्म,
    से चारों तरफ अंधेरा है ।।
    रिश्ते_नाते, सब लुप्त हुए,
    स्वारथ का भाई_चारा है।
    है मत्स्य_न्याय से त्रस्त जगत,
    सज्जन का नहीं गुजारा है।। संतोषी_पितु,मानस_मराल,
    जग के करतार प्रणाम तुम्हे ।
    हे एक दंत,है ज्ञान वंत,
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    हो विद्या, बुद्धि, प्रदाता तुम,
    जग मंगल करने वाले हो।
    गज_वदन, सदन_सुखदायक हो,
    सब संकट हरने वाले हो ।।
    स्रष्टा हो ,सारी सृष्टि के तुम,
    दृष्टा हो ब्यष्टि_समष्टि के तुम।
    शुभ_लाभ_पिता,प्रतिपाल तुम्ही,
    बादल हो दया की बृष्टि के तुम।।
    हे सर्वेश्वर, हे परमेश्वर,
    हे तारण हार प्रणाम तुम्हे ।
    हे एक दंत , हे ज्ञान वंत,
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    विश्राम हो तुम विश्रांतो के,
    ध्यानी_धारो, के ध्यान हो तुम।
    भक्तों के जीवन_प्राण हो तुम,
    भव_भय_हारी, भगवान हो तुम।।
    हो पाप, ताप, दुःख हारी तुम,
    संसार चलाने वाले हो।
    जल_चर,थल_चर,नभ_चर वासी,
    सब जीवों के एफसीरखवाले हो ।।
    हे अलख, अगोचर, अनंत_चर,
    गणपति , सुखसार प्रणाम तुम्हे ।
    हे एक दंत, है ज्ञान वंत,
    प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।

    डॉ शिव शरण श्रीवास्तव "अमल"

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