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    प्रार्थना

    अज्ञानता की चादर, ओढ़े मनुज पड़ा है।
    जो जानता स्वयं है, आगे दनुज खड़ा है॥
    विश्वास का पुजारी, विश्वास घात करता।
    इंसान इस जगत में, क्यों जात पात करता॥

    अंजान हूं जगत में, सुन सान जिंदगानी।
    गुरु पाठ कुछ पढ़ा दो, मैं शिष्य अल्पज्ञानी॥
    अब ज्ञान श्रेष्ठ देकर, अपने हृदय लगाओ।
    अभिमान अंध हरकर,नव एक लौ जलाओ॥

    पाकर मनुष्य तन को, कर्तव्य धर्म भूला।
    करता सृजन धरा पर, भर दंभ द्वेष फूला॥
    आता नही है मुझको,किरदार को निभाना।
    सद्भाव कर्म आए, गुरु ज्ञान कुछ सिखाना॥

    वरुण तिवारी मुसाफिरखाना 

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