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    पुरुषों को समानता का अधिकार"__

    "पुरुषों को समानता का अधिकार"__

    परम पिता परमेश्वर का,
    जब ब्रम्ह देव ने ध्यान किया।
    प्राप्त प्रेरणा से प्रेरित हो,
    प्रकृति_पुरुष निर्माण किया।।

    नर_मादा से युक्त सृष्टि मे,
    सचराचर, जड़, चेतन हैं।
    यही जगत की रीति_नीति है,
    शास्वत नियम सनातन हैं।।

    मानव ईश्वर की अनुपम कृति,
    सेवक, शिष्य, सहायक हैं।
    मनु_शतरूपा, दक्ष_प्रजापति 
    के वंशज सब लायक हैं।।

    नर_नारी जोड़े में रहकर,
    सृष्टि चक्र विस्तार करें।
    यही जगत पालक की इच्क्षा,
    सभी इसे स्वीकार करें।।

    न्याय दृष्टि मे कुदरत की,
    नर_नारी सभी बराबर हैं।
    सबको रहने, जीने, खाने,
    के अधिकार धरा पर हैं।।

    पर धीरे_धीरे समाज की,
    रीति_नीति मे धुंध पड़ी।
    बढ़ी विषमता नर_नारी मे,
    प्रेम भावना मंद पड़ी।।

    देवी, दुर्गा, शक्ती कहकर,
    महिलाओं को मान दिया ।
    पुरुषों को निर्दयी बताकर,
    पग, पग में अपमान किया।।

    जन्म, विवाह, ज्ञान, शिक्षा मे,
    धीरे_धीरे भेद बढ़ा।
     लड़के_लड़की के मानस मे,
    इस कारण मत_भेद बढ़ा।।

    कन्याओं की पूजा होती,
    घर, घर भोज खिलाते हैं।
    लड़कों को दुत्कारा जाता,
    कठिन काम करवाते हैं।।


    इससे लड़कों की हालत क्या ?
    होती बात न कहने की।
    जिस पर बीती वही जानता,
    सीमा टूटी सहने की।।

    कई जगह तो पुरुष वर्ग को,
    केवल शोषक बना दिया।
    झूठी हिंसक घटनाओं से,
    पुरुष वर्ग को जोड़ दिया।।


    जबकी कड़ुआ सच यह ही है,
    नारी_नारी से जलती ।
    सास, जिठानी, ननद रूप मे,
    पग_पग अपमानित करती ।।

    जो बेटी _मां, बाप, बहन, 
    भाई से प्रीति निभाती है।
    वही बहू बन सास, ससुर को
    वृद्धाश्रम भिजवाती है।।

    नारी होकर नारी की पीड़ा,
    को नहीं समझती हैं।
    फिर भी दोषी सिर्फ पुरूष है,
    यही प्रचारित करती हैं।

    यद्यपि कुछ नर हैं ऐसे,
    जो गलत नजरिया रखते हैं।
    घर, बाहर हर जगह नारियों,
    को अपमानित करते हैं।।

    कुछ पति अपनी पत्नी से,
    व्यवहार क्रूरतम करते हैं।
    डाट_डपट, गाली _गलौज कर,
    मारपीट भी करते हैं।।

    है उनसे करबद्ध निवेदन,
    मत ऐसा व्यवहार करें।
    दो कुल की रक्षक है नारी,
    उनसे निश्छल प्यार करें।।


    नारी,_नारी के गौरव का,
    पहले खुद सम्मान करो।
    अपने हाथों अपनी महिमा,
    का ही मत अपमान करो।।

    करो खत्म इस नादानी को,
    सज्जनता अब अपनाओ।
    छोड़ रूढ़ियां, सद विवेक का,
    निर्णय ले आगे आओ।।

    गलत प्रथाएं, अंध बेड़ियां,
    छद्म रिवाजें दूर करो।
    वैमनुष्यता के पहाड़ को,
    संकल्पों से चूर करो।।

    नारी श्रद्धा है शुचिता है,
    स्नेह मूर्ति सत धारी है।
    अधिकारों का दुरुपयोग,
    मत हो, यह सीख हमारी है।।

    नर, नारी में भेद नहीं हो,
    वहीं देवता रहते हैं।
    सभ्य समाज वही कहलाता,
    शिष्ठ उसे ही कहते हैं।।

    डॉ शिव शरण "अमल"

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