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    दिख जाते हैं अक्सर

    दिख जाते हैं अक्सर
    सडक किनारे... खेतों में
    कुछ फलदार वृक्ष के पौधे
    नये नये लगे हुए
    बेचारे
    बचेंगे या चर जाएँगे उनको
    जानवर साँड नीलगाय.... 
    फिर उनकी सुरक्षा के लिए
    बना दिया जाता है घेरा
    बेहया की डालों का
    चारों तरफ से... 
    कुछ समय बाद ही
    हो सकता है सूख जाएँ
    वो फलदार वृक्ष के पौधे
    पर फल फूल जाता है
    बेहया
    गुलाबी लाउडस्पीकर जैसे फूलों वाला.... 
    ठीक वैसे ही
    दिख जाती हैं
    सडक किनारे
    गाँवों में, झुग्गी झोंपड़ियाँ
    उनमें रहते गरीब
    दबे.. कुचले से.... 
    फिर आता है कोई मसीहा उनका
    उनकी ही जाति वाला
    गरीबी दूर करने.... 
    देखते ही देखते
    बन जाता है वह
    राजनेता, वीआईपी
    अमीर.... 
    रह जाते हैं
    गरीब और भी गरीब बनकर... 
    जाने क्यों
    याद आ जाता है
    फिर से वही
    गुलाबी लाउडस्पीकर जैसा
    हँसता फैलता
    अपना कुनबा बढाता
    *बेहया* 😎
    और क्या कहूँ इनको... 

    रचयिता
    *राजू पाण्डेय बहेलियापुर*

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