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    जियौ बहादुर सत्ताधारी,

    जियौ बहादुर सत्ताधारी, 
    ई महंगाई ई बेकारी, 
    कहबा की फैली बीमारी, 
    दुखी अहै जनता बेचारी, 
    खोब बजवाया लोटा थारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    चाहे जे कुर्सी पै बइठा, 
    गटइन काटिस बारी बारी, 
    सत्ता मद मा भुलि गवा ऊ, 
    हमरेन दम पै कटी सोहारी,
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    मूडे कै सब बार झरि गवा, 
    आँखी मोटा चश्मा चढि गवा, 
    कहत अहा ना मिले नौकरी, 
    एतने दिन हम केहे तयारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    एक तौ नौकरी मिलै ना हाली, 
    मिलेव पांच साल कांकर चाली, 
    परमानेंट हुअय के खातिर, 
    फिर से चाहे मोट दलाली, 
    गलती भै तुहंय वोट ई दइके, 
    अब आपन खोपड़ी दै मारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    चालिश उमर नौकरी पाए, 
    पांच साल फिर संविदा पै जाए, 
    होत पचास रिटायर करबा, 
    सुनिन बनाया तू तैयारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    अहा बहुत सत्तामद चूर, 
    लेकिन ऐतना सुना हुजूर, 
    आग से जिन खेला तू बाबा, 
    नहीं तौ टूटे तोहार गुरूर, 
    होए अबकी पत्ता गायब, 
    फिर बइठ विपक्ष मा देबा गारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    अपने मा तौ नहीं कटौती, 
    लेबा पिंशिन बइठ बुढौती, 
    भत्ता खर्चा बढाया आपन, 
    हमरेन खातिर भई दिनौधी, 
    अब ना चले ई तानाशाही, 
    आर पार कै भै तैयारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    बेचि लेहा संपत्ति सरकारी, 
    कार्यकाल ई हाहाकारी, 
    लाग की तू कुछ काबिल होबा,
    तू तौ निसरेव प्रलयंकारी, 
    तोहरे रंगबाजी से आजिज, 
    कर्मचारी सब हैं सरकारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.

    चीन पाक भौकाल बनाया, 
    हिन्दू मुस्लिम कहि डेरवाया,
    राष्ट्र भक्ति कै बात केहा जब, 
    तब तब सबकै साथ तू पाया, 
    अब तौ खुद मरि जाबै भूखा, 
    मरी ना तोहार मेघी मारी, 
    जियौ बहादुर सत्ताधारी.. 

    रचयिता
    *राजू पाण्डेय बहेलियापुर*

    बृजेश पाण्डेय जी 'इन्दु सुलतानपुरी' की मूल रचना जिसे रफीक शादानी जी ने मंचों पर अपने नाम से पढा, उस कालजयी कविता *जियौ बहादुर खद्दरधारी* से प्रेरित

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