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    सीधे कै मुँह कुत्ता चाटय,

    सीधे कै मुँह कुत्ता चाटय, 
    राम बचावंय यहि दुनिया से, 
    समय समय के खेल ई आटय. 
    बैठा रहौ ऊँट पै चढिके, 
    तबौ कूदिके कूकुर काटय... 

    सीधे कै मुँह कुत्ता चाटय.. 

    सीधे कै नहीं कहूँ गुजारा, 
    बिन गलतिउ के जाय ऊ मारा, 
    मीठा सरबत चहे पियावय, 
    लागत है सबका ऊ खारा.
    धंधा पानी सब मा फिसड्डी, 
    लागत है कुल ओहके घाटय.. 

    सीधे कै मुँह कुत्ता चाटय... 

    बाकी दुनिया चतुर सयानी, 
    जेहके डंसा न माँगय पानी, 
    एक से बढकर एक परा हैं, 
    सबके आपन अलग कहानी.
    वही के काँधे गोड सब धरिके,
    ओहसे आगे भागत बाटय.. 

    सीधे कै मुँह कुत्ता चाटय.. 

    समझ लिया दुनिया के लीला, 
    चेहरा साफ कैरेक्टर ढीला, 
    सब हैं आग लगावत अइसे, 
    भक्क से बरिजाय केतनौ गीला, 
    केहू का कुछ ना बोलव राजू, 
    उल्टा चोर कोतवाल का डांटय.. 

    सीधे कै मुँह कुत्ता चाटय... 

    रचयिता
    अवधी कवि
    *राजू पाण्डेय बहेलियापुर* .

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