*वंदना एवं प्रार्थना में अंतर*
वंदना में ईश्वर का ध्यान करते हुए उनकी स्तुति की जाती है। उनका स्मरण किया जाता है। वस्तुत: जीवन के प्रति कृतज्ञता दी जाती है। जिससे बच्चों में कृतज्ञता, नम्रता के गुणों का विकास होता है।समाज की हम से अपेक्षा है कि नैतिक गुणों एवं संस्कारों की प्रत्येक दिन की शुरूआत वंदना से हो। इसलिए विद्यालयों में केवल प्रार्थना कराई जाती है।
प्रार्थना में हम ईश्वर से मांगते हैं। जबकि वंदना में ईश्वर का ध्यान करते हुए उनकी स्तुति की जाती उनका स्मरण किया जाता है। जीवन के प्रति कृतज्ञता दी जाती है। जिससे संतति में कृतज्ञता, नम्रता के गुणों का विकास होता है। जो हमारे नैतिक पक्ष को मजबूत करती है।
*स्तुति और प्रार्थना में अंतर*
स्तुति का अर्थ है किसी की बड़ाई करना, प्रशंसा करना जबकि प्रार्थना करते हैं किसी से कुछ प्राप्ति के लिए। प्रार्थना है प्राप्ति के लिए विनीत भाव से निवेदन करना।
ईश्वर की स्तुति का अर्थ यह कि ईश्वर के जितने भी गुण ,कर्म स्वभाव हैं उनकी प्रशंसा करना। उदाहरणार्थ- हे परमेश्वर तुम न्यायकारी हो, दयालु हो, आनन्दमय हो इत्यादि। प्रार्थना में ईश्वर से उसके गुणों की प्राप्ति के लिए विनय की जाती है।
ईश्वर की स्तुति और प्रार्थना साथ-साथ की जा सकती है। जैसे
हे ईश्वर, आप न्यायकारी हो, मुझे भी न्याय करने की प्रेरणा दो। मैं भी किसी के साथ अन्याय ना करुं।
हे ईश्वर, तुम दयालु हो मेरे में भी दया की भावना विकसित हो।
हे ईश्वर, तुम आनंद के सागर हो, मेरा जीवन भी आनंदमय हो। इत्यादि।
कर्म और भक्ति में कोई अंतर नहीं। अच्छे कर्म करना ईश्वर की भक्ति ही है।
क्या भगवान हमारी प्रार्थना सुन रहे हैं?
भाषा बोली लिपि कोई भी क्यों न हो , उससे याचना के सम्प्रेषण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान शब्दों की अपेक्षा भाव ग्रहण करते हैं।
एक पुरुष और स्त्री की प्रार्थना में क्या फर्क होता है?
सर्वप्रथम में बताना चाहूँगा प्रार्थना स्त्री की हो या पुरुष की दोनों में किसी प्रकार का कोई फर्क नही होता है। क्योंकि लोग अक्सर पार्थना क्यों मांगते है? उन्हें किसी बात का दुख,चिंता या किसी की सलामती का ख्याल रहता है।
एक पुरुष चाहे वो पिता,पति,बेटा, कुछ भी हो सकता है।
एक पिता- अपने बच्चों की खुशहाली,तथा सलामती की दुआ मांगता है।
एक पति- अपनी जीवन संगिनी के साथ सुखद सफल जीवन बिताने के लिए प्रार्थना करता है।
एक बेटा- अपने उज्वल भविष्य या अपने माता पिता के लिए कुछ करने लिये जॉब या बिज़नेस में सफलता की प्रार्थना करता है।
एक स्त्री चाहे वो माँ, पत्नी, बेटी हो सकती है।
एक माँ- ये भी पिता की तरह अपने बच्चों की
क्या ईश्वरीय प्रातःकालीन प्रार्थना, स्तुति अच्छी होती हैं?
सच्ची प्रार्थना कैसी होती है ?
दिल की पुकार जो भगवान को हिला देती है।
पूरा विश्वास कि भगवान हमारी बात जरूर मानेंगे। गज, उत्तरा आदि।
क्या प्रार्थना का असर होता है?
मेरे धर्म-पंथ में तो यह मान्यता है कि हर कर्म का फल सुख और दुःख के रूप में अलग अलग मिलता है। इस जन्म में या अगले जन्मों में। और फल मिलता भी उसे ही है, जिसने वह कर्म किया है। एक बुरे कर्म का फल किसी अच्छे कर्म के फल से निरस्त नहीं होता। चोरी की है तो उसका फल भी मिलेगा और दान दिया है तो उसका फल भी मिलेगा, अलग अलग।
उपरोक्त बात एक निष्पक्ष और कठोर सत्य है। हाँ, यह बात भी सत्य है कि तहेदिल से पश्चाताप के रूप में प्रार्थना करने पर परमेश्वर उसे आसान कर देता है। अर्थात् पहाड़ की ऊँचाई तो कम नहीं होती, लेकिन उस पर चढ़ना आसान हो जाता है।
परंतु जब तक इंसान भावनाओं का पुतला है, वह समझता है कि प्रार्थना या द
ध्यान और प्रार्थना में क्या अंतर है?
यह मानकर प्रार्थना की जाती है कि देवी, देवता या भगवान या ईश्वर जो भी आप नाम देना चाहें वह हमारी प्रार्थना सुनकर उसका हल देगा।
ध्यान उसी भगवान या ईश्वर को पाने का, जानने का एक तरीका है।
प्रार्थना और याचना में क्या अंतर है?
प्रार्थना -मूल रूप से यह शब्द परमात्मा या भगवान के लिए उपयोग किया जाता है परंतु यह प्रकारांतर में से बड़ों से अनुरोध या किसी माँग या इच्छा ज़ाहिर करने में भी किया जाता है. यहाँ प्रार्थना का अर्थ सृष्टि के रचयिता से सम्बंध स्थापित करने या आत्मबल बढ़ाने की अपेक्षा अपनी स्थिति को स्पष्ट करने में उपयोग प्रायः देखा गया है जो कि इसकी मूल भावना या अर्थ के बिल्कुल उलट है. इसमें सम्मान,राह प्रदर्शन,शांति,स्नेह एवं सम्बंध का स्थान प्रमुख होता है और माँग का कोई स्थान नहीं.
याचना-यह गिड़गिड़ाने अथवा स्वयं को नीचे रख कर दया की भावना प्रदर्शित करने हेतु निवेदन है जिसमें व्यक्ति जिससे याचना की जा रही है उसका … और पढ़ें
हिंदुत्व और जिहाद में क्या अंतर है?
हर्ष भाई अनुरोध करने के लिए धन्यवाद..
भाई में सोचता हूं कि इन दोनों में अंतर लोगो की सोच के हिसाब से होता है। कुछ लोगो की सोच इन शब्दो का क्या अर्थ निकालती हे ओर वह लोग इन शब्दो का केसे इस्तेमाल करते है तो उन लोगो के हिसाब से इनमे अंतर हो जाता है। जैसा वह लोग इस्तेमाल करते हे अंतर भी वैसा ही हे।
अब में अपने ऊपर के पेरा की व्याख्या कर देता हूं। देखो हर्ष भाई ना कभी कोई धर्म बुरा होता है ओर ना ही हर इंसान बुरा होता है। बुरे होते हे वह लोग जो धर्म की आड़ में अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक लेते हे।
सबसे पहले बात करते हे हिंदुत्व की अगर हिंदुत्व का मतलब हिन्दू धर्म से हे तो हिन्दू धर्म कहता है तुम जीव मात
क्यों सभी धर्मों में सामूहिक प्रार्थना करने का विधान बना हुआ है?
जी हां सामूहिक प्रार्थना की परंपरा लगभग सभी धर्मों में प्राप्त होती है कई बार मनुष्य के जीवन से संबंधित धार्मिक कृतिय में भी इसका स्वरूप देखा जा सकता है एवं धार्मिक आयोजनों का सामाजिक स्वरूपन भी यही सिद्ध करता है
धर्म और संप्रदाय में क्या अंतर होता है? कैसे खालसा पंथ और जैन मत को धर्म मान लिया जाता है?
धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य/उद्देश्य/मानक |
धारयति इति धर्मः का अर्थ होता है "जो धारण योग्य हो, वही धर्म है"
उदाहरण : शरणागति की रक्षा करना धर्म है |
"जिसे धारण किया जा सके, उसे धर्म कहना" केवल आंशिक सही होगा |
धारण तो लोग दूसरों को धोखा देने की मानसिकता भी लेते हैं |
आदि काल से मनुष्य होने के नाते जो जो उचित समझा गया उसे मनुष्य ने, इस समाज ने धर्म माना |
इसीलिए हमारी संस्कृति ने इस धर्म को नाम दिया "सनातन" धर्म |
एक ऐसा धर्म, नियम, कर्तव्य, मान्यता जो सार्वभौम, यूनिवर्सल है |
जो कहीं भी किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं करता है |
जाति/वर्ण व्यवस्था समाज की देन है, धर्म की नहीं |
-प्रखर दीक्षित