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    एक्कौ बार नहीं तू बोल्या, तुहका खोब गोहराए भैया।

    एक्कौ बार नहीं तू बोल्या, 
    तुहका खोब गोहराए भैया। 
    तोहरे खेते परी रहीं हीं, 
    दुई ठी सांड पाँच ठो गैया। 

    देखे उनका हांकि के आये,
    उत्तर कइती सड़क डकाये। 
    गति होईगै हमार तौ भाय, 
    तू तौ परा हा हिंया बिछाय। 

    करिया करिया और मकरहवा, 
    एकवा सांड रहा मरकहवा। 
    जौ मार देत करित हाय दैया, 
    तुहका खोब गोहराए भैया।। 

    जे केहु सारेन छोडिके, छुट्टा देहें भगाय। 
    वै सब गारी सुनि रहे, कान मा अंगुरी डाय। 

    बिटिया बहिन एक ना छोडी, 
    सामने परंय खोपडियौ फोरी। 
    हांकत हांकत हम पगलाने, 
    एक्कौ करम बचा नहिं भैया। 
    तुहका खोब गोहराए भैया।। 

    जबले दतुइन घिसि रहे, सजीवन परें गोहराय। 
    राजू तोहरे खेत मां, चरति अहंय हो गाय। 

    सुनतय मान तुरत हम भागे, 
    जल्दी मा डंडा लाठिव ना देखान। 
    सरपट पहुँचिन डाँटत बोलत, 
    मेडे पै सरकिन गिरिन उतान। 
    हमका प्यार से चाट रहि गैया।
     तुहका खोब गोहराए भैया।। 

    रचयिता :-
    *राजू पाण्डेय बहेलियापुर* ।।

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