भगवान शिव को देवों के देव महादेव की श्रेणी में रखा जाता है। ये वह देवता हैं, जो अपने भक्तों को उनके दुःखों से निजात दिलाते हैं। हमारे सारे कष्ट, दर्द व पीड़ा को अपना मानकर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं। कहा जाता है कि हर सोमवार उनकी पूजा करने से हमारी सारी परेशानी दूर हो जाएगी। त्रिदेवों में एक ऐसे देव के रूप में उनकी गणना की जाती है, जो अन्य देवों के विपरीत वैरागी हैं। जहाँ वो शिव के रूप में वैराग्य और संन्यास को प्रधानता देते हैं वहीं शंकर तक की यात्रा के क्रम में वो वैराग्य जीवन से गृहस्थ की ओर उन्मुख होने लगते हैं। पार्वती माता से विवाहोपरांत उनके जीवन में कई परिवर्तन आते हैं।
वेदों में शिव को रूद्र के रूप में दिखाया गया है, इन्हें संहारकर्ता देवता के रूप में बताया गया है। सिंधु घाटी सभ्यता पर नजर डाले तो शिव को योगी के रूप में दिखाया गया है। रूद्र की पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों रूप में की जाती है। इनका सौम्य और रौद्र रूप दोनों समाहित है। शिव ही सत्य और सत्य ही सुंदर है। इसी रूप में पूरे विश्व का भरण पोषण करते हैं।
भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं, जिनकी उपासना देवता ही नहीं बल्कि दानव, नर, गंधर्व सभी करते हैं। अपने भक्तों के हर दुःख को हरने वाले शिव, उनके श्रद्धानुसार उनको परिणाम भी देते हैं। एक ऐसी कथा का वर्णन भी पुराणों में मिलता है कि जब देवर्षि नारद ने भगवान शिव से पूछा कि आप श्मसान में क्यों वास करते हैं तो भगवान शिव ने बेहद अलग अंदाज में जवाब देते हुए कहा कि मानव जीवन के रूप में जो शरीर दिया गया है वह अच्छे और बुरे दोनों के ज्ञान के लिए है। लेकिन लोग सिर्फ अच्छी और शुभ घटना को ही केवल सत्य मान बैठते हैं। वह सांसारिक जीवन में इतना खो जाते हैं कि इससे इतर भी जीवन है, उसकी उपेक्षा कर बैठते हैं। यही कारण है कि जब उनके जीवन में कोई अप्रिय अथवा अशुभ घटित होता है तो वो अपने जीवन से निराश हो जाते हैं और इससे भागना चाहते हैं। इससे इनका चारित्रिक अथवा व्यक्तिगत पतन हो जाता है। मानव जीवन को इस पतन से बचाने के लिए ही हमें श्मसान में वास करना पड़ता है, क्योंकि यही वह स्थान है जो हमें सत्य का आभास कराते हैं। यही वह स्थान है जहाँ मानव, भगवान राम का नाम अंत समय में भी लेता है, यही सुनने के लिए मैं यहाँ वास करता हूँ।
भगवान शिव त्रिदेवों में एक देव महादेव और भोल भंडारी हैं। वेदों में इन्हें रूद्र नाम से पुकारा गया है। अधिकतर चित्रों में इन्हें योगी के रूप में दिखाया गया है, इनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों रूपों में किया जाता है। सावन माह को शिव का महीना माना जाता है, इस पूरे महीने भगवान की शिव की पूजा-आराधना की जाती है, रूद्राभिषेक के उपरांत बेलपत्र और फूल चढ़ाया जाता है। भगवान शिव की पूजा हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजा करना चाहिए। भगवान शिव को सावन का महीना बहुत प्रिय है क्योंकि इसी माह में इनका अपनी पत्नी से पुनः मिलन हुआ। यही कारण है कि कुंवारी लड़किया अच्छा वर पाने के लिए श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को इसका व्रत रखती हैं। सावन के महीने को भगवान शिव का का महीना कहेने के पीछे एक अन्य कारण है। शिव पूजा की परंपरा और कथा से भी इसे समझा जा सकता है। सावन दक्षिणायन में आता है जिसके देवता शिव है, इसलिए इन महीने इनकी पूजा करना फलदायक और शुभ माना जाता है, यही नहीं सावन में बारिश होता है इसलिए इस महीने में फूल, बेलपत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं इसलिए इस महीने भगवान शिव की पूजा करने की एक परंपरा बन गई। इसके अतिरिक्त स्कंद पुराण में भी कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं सनतकुमार को इस महीने की विलक्षणता के बारे में बताते हुए माना कि उन्हें यह महीना बहुत प्रिय है, इसलिए इस माह की हर तिथि व्रत और हर दिन त्योहार होता है।
इस माह में नियम पूर्वक संयमता से रहते हुए पूजा करने से शक्ति और पुण्य बढ़ता है। स्कंद और शिव पुराण के अनुसार सावन माह का नाम सावन इसलिए हुआ कि इस महीने की पूर्णिमा तिथि पर श्रावण नक्षत्र होता है इसलिए इसका नाम सावन पड़ा। सावन माह की महत्ता के बारे में महाभारत के अनुशासन पर्व में अंगिरा ऋषि ने बताया कि जो इंसान मन और इन्द्रियों को काबू में रखकर एक वक्त का भोजन खाते हुए यह मास व्यतीत करता है, उसे कई तीर्थों में स्नान करने योग्य पुण्य मिलता है।
सावन महीने में रूद्राभिषेक भी किया जाता है, क्योंकि इसी महीने समुद्र मंथन हुआ था। इस मंथन से हलाहल विष निकला था, संसार की रक्षा हेतु इन्होंने इस विष को अपने कंठ पर धारण कर लिया था जिसके कारण उनके शरीर का ताप बहुत बढ़ गया था इसी उष्णता और जहर के असर को शांत करने के लिए देवी देवताओं ने उन पल जल चढ़ाया इसलिए इस महीने भगवान शिव का रूद्राभिषेक भी किया जाता है।
भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है इसके पीछे भी यह माना जाता है कि भगवान शिव के बाएँ नेत्र में चंद्रमा, दाएँ में सूर्य और बीच में अग्नि का वास होता है। बेलपत्र को भी शिवजी के त्रिनेत्रके समान माना जाता है, बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव के साथ-साथ चंद्रमा, सूर्य और अग्नि देवता की भी पूजा हो जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार, बेल के पेड़ में कई देवियों का भी वास होता है, इसलिए बेलपत्र को चढ़ाने से इन देवियों की पूजा भी स्वतः हो जाती है। यह भी कहा जाता है जो बेलपत्र से पूजा करने पर दरिद्रता दूर होती है।
हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर श्रावण मास में भगवान शिव की विशेष पूजा क्यों की जाती है, ऐसी मान्यता है कि मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लंबी उम्र के लिए इसी माह में घोर तप कर शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिससे यमराज भी मार्कण्डेय के प्राण नहीं हर सके। यही कारण है कि लंबी उम्र पाने, असमय मृत्यु पर विजय पाने एवं रोगों से छुटकारा के लिए इस माह विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा की जाती है।
भगवान शिव की पूजा के दौरान भस्म भी चढ़ाया जाता है, भगवान शिव की भस्म आरती भी की जाती है इसके पीछे भी एक कारण पौराणिक कथाओं में आती है। जब दक्ष प्रजापति भगवान शिव का अपमान किया तो माता सती ने हवनकुंड में जलकर अपने प्राण त्याग दिए, तब भगवान शिव ने माता सती की चिता का भस्म खुद पर लगा लिया, तभी से भगवान शिव पर भस्म लगाने की परंपरा की शुरूआत हुई।
इस प्रकार भगवान शिव संपूर्ण जगत के आराध्य और श्रद्धेय हैं। शिव से शंकर तक बनने का उनका सफर काफी रोमांचित और प्रेरक है, जो यह दिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति संन्यास / वैराग्य से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हुए भी अपनी विलक्षणताओं को कायम रख सकता है। यह प्रकृति के सारे प्राणियों के लिए अभिभूत करने वाला प्रेरक प्रसंग है। भले ही भगवान शिव हमारे लिए एक देवों के देव के रूप में पूजनीय हैं लेकिन उनके जीवन का जितना भी समझने और जानने का प्रयास करें तो यह हमें कई तरह की शिक्षा भी देती हैं। वे हमें विनम्र एवं सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करतें है, साथ ही परोपकार एवं कल्याण की भावना हमारे अंदर कैसे आ सकती है व्यक्ति में कोध भी आ सकता है यह वह भगवान होने पर भी हमें दिखाते हैं फिर हम साधारण व्यक्ति गुस्से पर कैसे काबू पा सकते हैं उसकी सीख भी हमें देते है।
- डॉ रानी कुमारी उर्फ प्रीतम
(लेखिका एवं कवयित्री, सहायक प्राध्यापक, इतिहास)