*नंदी बाबा के कर्ण में शिव भक्त क्यों बोलते हैं ?*
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श्रावण मास में सारा संसार शिव मय हो जाता है। सभी शिवालयों में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है।भक्तगण शिव जी का जलाभिषेक व आराधना तो करते ही हैं साथ ही नंदी जी को भी जल अर्पित करते हैं और उनके कान में अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए भी कुछ जरूर कहते हैं। इसके पीछे का क्या रहस्य है? उसको आइए जानते हैं।
हम किसी शिव मंदिर में जब भी जाते हैं तो वहाँ अक्सर हम ये देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे हुए नंदी (बैल) के कान में अपनी-अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु भी ये जरूर कहते हैं। यह एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा के पीछे की वजह भी एक मान्यता है। आज हम आपको उसके बारे में बताने जा रहे हैं।
"यह एक मान्यता है,जहाँ भी कोई शिव मंदिर होता है,वहाँ नंदी (बैल) बाबा की भी स्थापना जरूर की जाती है। क्योंकि नंदी बाबा के बिना प्रत्येक शिव मंदिर अधूरा होता है। नंदी बाबा भगवान शंकर जी के परम भक्त हैं। इसीलिए जब कोई शिव भक्त मंदिर में आता है तो वह वहाँ शिव लिंग पर जल,पुष्प,बेल पत्र इत्यादि चढ़ा कर शिव जी की पूजा अर्चना तो करता ही है,उसके बाद नंदी के ऊपर भी वह जल पुष्प अक्षत आदि चढ़ाता है और नंदी के कान में अपनी मनोकामना के पूर्णता के लिए भी शिव जी से संदेश के रूप में कहता है।
इस तथ्य के पीछे एक मान्यता यह है कि भगवान शिव शंकर एक तपस्वी हैं,वे हमेशा ध्यानमग्न और समाधि में ही लीन रहते हैं।ऐसे में भोले नाथ को समाधि और तपस्या में कोई विघ्न व बाधा न उत्पन्न हो,इसलिए नंदी बाबा ही उनकी देख-रेख करते हैं एवं वही हमारी मनोकामना पूर्ति हेतु नंदी जी के कान में कहे गए हमारे मनोकामना पूर्ति के संदेशों को नंदी बाबा शिवजी तक पहुँचाते हैं। इसी एक प्रचलित मान्यता के चलते लोग नंदी बाबा के कान में अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु शिव जी के लिए संदेश प्रेषित करने हेतु कहते हैं।"
"भगवान शिव शंकर जी के ही एक अवतार नंदी भी हैं। शिलाद नाम के एक ऋषि मुनि थे,जो एक ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। श्री शिलाद मुनि ने संतान प्राप्ति हेतु अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे अयोनिज और मृत्युहीन एक पुत्र का वर माँगा। भगवान शिवजी शिलाद मुनि की इस तपस्या से प्रसन्न होकर मुनि को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया।
एक दिन जब शिलाद मुनि,भूमि जोत रहे थे,तो उन्हें एक बालक मिला इस बालक का नाम शिलाद मुनि ने स्वयं
नंदी रख दिया। कुछ दिनों बाद एक दिन भ्रमण करते हुए उधर,मित्रा और वरुण नाम के दो ऋषि मुनि,शिलाद मुनि के आश्रम में आए। उन्होंने नंदी को देख कर मुनि शिलाद को बताया कि यह बालक नंदी तो बड़ा अल्पायु है। यह सुनकर तो ये नंदी जी महादेव की परम आराधना करने लगे। नंदी से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी प्रकट हुए और कहा कि तुम तो मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें इस मृत्यु से भय कैसे हो सकता है ? ऐसा कह कर स्वयं भगवान शिवजी ने ही नंदी को अपना गणाध्यक्ष भी बनाया।"
भगवान शिव के परम प्रिय गणाध्यक्ष नंदी जी को भी इसी लिए शिवभक्त जल,पुष्प,बेल पत्र इत्यादि सभी चीजें चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु अपना संदेश भी नंदी के कर्ण में कहते हैं,ताकि उनका संदेश नंदी जी द्वारा भगवान शिवजी के पास पहुँच सके और भोले नाथ का उनके आशीर्वाद रूप में मनोकामना पूर्ति का प्रसाद भक्तगणों को प्राप्त हो सके।
जय शिव शंकर। जय भोले नाथ। जय नंदी बाबा। हर हर महादेव।
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आलेख :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
फाउंडर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर,उत्तर प्रदेश एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,डिस्ट्रिक्ट-114,प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश