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    विश्लेषण - भारतीय राजनीति किस ओर? -

    *विश्लेषण - भारतीय राजनीति किस ओर? - -अजीत सिन्हा*

    अटूट गठबंधन में टूट की राजनीति जहां सत्ता वर्ग विपक्ष वर्ग की पार्टियों में सेंध लगाने का कार्य कर रही है वहीं 2024 की चुनाव के मद्देनजर विपक्ष की एकता में ग्रहण लगना स्वाभाविक रूप से प्रतीत हो रहा है। हाल की राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टी की टूट ये साबित करती है कि विपक्ष की पार्टियों में से एक के एम. एल. ए. पर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष शरद पवार जी का कमान नहीं रहा और उनके सबसे खासमखास और भतीजे अजीत पवार जी का एन. डी. ए. में जाना और महाराष्ट्र की सत्ता का भागीदार बनना विपक्ष की एकता पर ग्रहण लगने के समान ही है। पटना की विपक्षी दलों बैठक जहां विपक्षी एकता की पृष्ठभूमि तैयार कर रही थी वहीं सत्ता वर्ग में चुनावी तैयारियों को ध्यान में रखते हुये जोड़ - तोड़ की राजनीति को अंजाम दे रहा था जिससे ये साबित होता है सत्ता हासिल करने हेतु सत्ता वर्ग आने वाले चुनाव को किसी युद्ध से कम नहीं समझ रहा है क्योंकि युद्ध में सब जायज है और इसी क्रम में बंगाल का रक्तरंजित पंचायत चुनाव भी युद्ध की परिभाषा को ही परिभाषित कर रहा है जिसमें पार्टी के कार्यकर्ताओं, गुंडों और आम लोंगो का जान जाना पानी से भी सस्ती दर्शा रहा है जिससे किसी के भी मन में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर भारतीय राजनीति किस ओर जा रहा है और राजनीतिक वर्ग किस तरह की लड़ाई को लड रहे हैं?
    क्या जोड़ - तोड़ की राजनीति से देश बढ़ेगा या रक्तरंजित राजनीति से? आखिर राजनीतिज्ञों को हो क्या गया है, ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करने की मंशा जहां सत्ता वर्ग के लिए उचित नहीं है वहीं दूसरी ओर भय का माहौल बनाकर सत्ता को बचाये रखने या सत्ता प्राप्ति की रूपरेखा को तैयार करने की मंशा भारतीय राजनीति का स्वर्णिम काल तो कदापि नहीं कहला सकता है और तुष्टीकरण एंव ध्रुवीकरण की राजनीति हेतु किसी भी तरह के अनर्गल प्रयास भारतीय राजनीति का पतित काल ही कहलायेगा।
    राजनीति में शुचिता, सच्चरित्रता की बातें अब अवश्यंभावी ही दिखाई देती है क्योंकि अब मेरी समझ से अधिकतर जनता भी पूरी तरह से ईमानदार नहीं रही क्योंकि जहां एक ओर भ्रष्टाचारी नेताओं के चरित्र उजागर हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर जनता भी भ्रष्टाचार से लुटाये धन पर बिकने को तैयार बैठी है कहने का तात्पर्य यह है कि जहां देश के राजनीतिक वर्ग का जहां चरित्र गिरा है वहीं दूसरी ओर जनता - जनार्दन का भी।
    कोई घुमाये तो जनता घूमे क्यों? जनता को अपनी वोट की ताकत को पहचाननी होगी और सही उम्मीदवारों पर वोट लगाकर ही भारतीय राजनीति और राजनीतिक वर्ग को स्वच्छता की ओर ले जायी जा सकती है।
    मेरी समझ से आज के दौर में भारतीय राजनीति पतन की ओर अग्रसर है जहां सत्ता वर्ग में न ईमानदारी, सच्चरित्रता रह गई है और न ही विपक्ष के दलों में, इसलिए अब जनता की जिम्मेदारी और बढ़ गई है कि वे फिर से देश में स्वच्छ राजनीति और राजनीतिज्ञों को जन्म दे सकते हैं। या यों कहें आज देश को ऐसी ईमानदार शक्ति की जरूरत है जो सही मायनों में देश का कल्याण करना चाहते हैं और देश को स्वर्णिम काल में लाना चाहते हों और इसके लिए देश सही नेतृत्वकर्ता की भी आवश्यकता है और इसके लिए देशभक्त पार्टियों में किसी एक का चुनाव भी जरूरी है और सही नेतृत्वकर्ता की तलाश भी। जय हिंद

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