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    अब तौ कुछ बरसा भगवान - राजू पाण्डेय बहेलियापुर

    अब तौ कुछ बरसा भगवान, 
    ऊँचे खाले केतना सींची, 
    सींचि के केतना होए धान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 
    बीत चिरइया, लाग असरेखा, 
    बीत समय ई देखी देखा। 
    अब सब जने अही परेशान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    इंटरनेट पै रोज देखावय, 
    धरती तक बूँदौ ना आवय, 
    झूठा भा मौसम विज्ञान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    होत सबेर चलाई इंजन, 
    अब खेतेन मा दतुइन मंजन। 
    मेडे पै बइठा अही भुखान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    डाइ दिहिन धाने मा खाद, 
    उडि गै ओदी ओहके बाद। 
    उज्जर होइगा खेत झुरान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    खेतेन मा जकरेटी घास, 
    देखि के ओहका फूलय साँस। 
    केतना निरवावय किसान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान। 

    खर्चा बहुत अहय निरवाई, 
    कीतौ एहमा परय दवाई। 
    कुछ दिन का बैठाए धान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    फरुहा ली घार जाइ काटी, 
    सींचेव खेत लगे नहिं माटी। 
    मेंडन पै कीरा उतिरान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    आरी बगल तौ छिट्टव मारया, 
    गौरीगंज से केहा किनारा। 
    ऐस काहे बाट्या रिसियान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    छोडि नौकरी कै लीन खेती, 
    परिन चपेटे, तौ बुद्धि चेती। 
    ऐस खेती से पकडिन कान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    अब छोडिके गाँव शहर का भागी, 
    ई तो हमका नीक ना लागी। 
    अपनी माटी मा बसा है प्रान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    गरदा घामे रंग करियान, 
    सूखि गै देहिंया, अही निमरान। 
    जियत अही बस कउनौ खान। 
    अब तौ सुधि लइला भगवान।। 

    आई गुड़िया परि गवा झूला, 
    गोझिया सोहारी मा टेंशन भूला। 
    फिर ई टेंशन रहे बिहान। 
    अब तौ कुछ बरसा भगवान।। 

    रचयिता:-
    राजू पाण्डेय बहेलियापुर 

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