चुपके से जो दिया बुआ ने,सिक्का याद आज भी है।
बुआ पंचमी में आयेंगी,
सबको रहता था विस्वास।
कुछ न कुछ मिल ही जायेगा,
रहती थी बच्चों को आस।।
अब वो लौट के न आयेंगी,
बड़ा विषाद आज भी है।
चुपके से जो दिया बुआ ने,सिक्का याद आज भी है।
भादौं के मेले में जाना,
लिये भतीजों की टोली।
कुछ न कुछ जरूर दिलवाती,
चाट जलेबी टॉफी गोली।
डांट से माँ की हमे बचातीं,
ये फरियाद आज भी है।
चुपके से जो दिया बुआ ने,सिक्का याद आज भी है।
पूरा गली मुहल्ला टोला,
सबके घर आती जाती।
दादी काकी बूढ़ी माई से,
जी भरके वो बतियातीं।
उनके गीतों की मिठास का,
दिल मे नाद आज भी है।
चुपके से जो दिया बुआ ने,सिक्का याद आज भी है।
ताल पोखरा जंगल भीटा,
सब कुछ उनको याद रहा।
जब तक वो आती जाती थीं,
खेत बाग आबाद रहा।
उनकी यादों की इक दुनिया,
मन आजाद आज भी है।
चुपके से जो दिया बुआ ने सिक्का याद आज भी है।।
*राजू पाण्डेय बहेलियापुर*