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    शिव एवं शिवत्व __

    शिव एवं शिवत्व __
        देवाधिदेव महादेव के बारे में कुछ भी कहना, सुनना,सुनाना, जानना , समझना, समझाना सूरज के सामने दीपक दिखाने जैसा ही मानना चाहिए। महर्षि वेदब्यास जी 24000 श्लोकों के साथ "शिव महा पुराण"तथा 11000 श्लीको के साथ "लिंग पुराण"मे भगवान शिव के बारे में सारी जानकारिया पहले ही दे चुके हैं।
          फिर भी जनसामान्य भगवान शिव और शिवत्व के बारे में परिचित हो सके तथा कई तरह की भ्रांतियों से छुटकारा पा सके, इसी उद्देश्य से यह आलेख लिखा जा रहा है।
         शिव का अर्थ होता है "शुभ", शंकर का अर्थ होता है "कल्याण कारी"रूद्र का अर्थ होता है"विनाश कारी "वैसे तो भगवान शिव के लाखों नाम है परन्तु सामान्य जन इनके इन्हीं तीनों नामों शिव, शंकर, और रूद्र से परिचित हैं, इनका सामान्य अर्थ यही है कि, भगवान शिव शुभ कारी हैं, कल्याण कारी हैं और दोष, दुर्गणो के विनाशक हैं।
         भगवान शिव पर भांग,धतूरा, गांजा आदि मादक पदार्थों के चढ़ाए जाने की परम्परा है इसका सामान्य भाव यही है कि इनके कल्याणकारी (औषधीय गुणों) को ग्रहण किया जाए और विनाशकारी (नशे की लत) का त्याग किया जाए।
         मस्तक में चंद्रमा और गंगा के धारण का सामान्य अर्थ यही है कि शिव भक्तों को चन्द्रमा जैसा शीतल एवं गंगा जैसा पवित्र होना चाहिए। गले में सर्पों की माला, भूत _प्रेतों का साथ, शमशान में निवास, समत्व एवं वैराग्य भाव का द्योत्तक है।
           पार्वती माता को "श्रृद्धा और भगवान शिव को विश्वाश"कहा गया है । उनके दोनो पुत्र स्वामी कार्तिकेय और प्रथम पूज्य गणेश जी यही संदेश देते हैं कि यदि श्रृद्धा और विश्वाश का मिलन होता है तो कार्तिकेय जैसा पराक्रमी और गणेश जैसा कुशाग्र बुद्धि का प्रादुर्भाव होता है।
          यों तो पुरे विश्व में लाखों की संख्या में शिव के विग्रह और मंदिर हैं, परन्तु द्वादश ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है, जो इस प्रकार हैं _

    सौराष्ट्रे सोमनाथं च 
    श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

    उज्जयिन्यां महाकालं 
    ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

    परल्यां वैद्यनाथं च 
    डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

    सेतुबन्धे तु रामेशं 
    नागेशं दारुकावने॥

    वाराणस्यां तु विश्वेशं 
    त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

    हिमालये तु केदारं 
    घुश्मेशं च शिवालये॥

    एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि 
    सायं प्रातः पठेन्नरः।

    सप्तजन्मकृतं 
    पापं स्मरणेन विनश्यति॥
       
                शिव कौन है शिव तत्व क्या है? इस सृष्टि में शिव का क्या महत्व है। इस सृष्टि का संबंध शिव से क्या है ?क्या यह सृष्टि शिवतत्व के आधीन है ? आइए इन बिंदुओ पर सामान्य चर्चा करते हैं।

    शिवत्व में "शिवतत्व "और "शक्तितत्व "दोनो का अंतर्भाव होता है। परमशिव प्रकाश विमर्शमय है। इसी प्रकाशरूप को शिवतत्व और विमर्शरूप को शक्तितत्व कहते हैं। यही विश्व की सृजन, पोषण और संहार के रूप में प्रकट होती है। शिवत्व को समझने के लिए भौतिक परिधि से कुछ आगे निकलना पड़ेगा ।

     आधुनिक विज्ञान मानता है कि पूरी संरचना को इंसान के तर्कों पर खरा उतरना चाहिए, परन्तु यह संपूर्ण सृष्टि मानव बुद्धि के तर्कों पर कभी भी खरी नहीं उतर सकती। हमारा दिमाग इस सृष्टि में तो समा सकता है, परन्तु यह सृष्टि हमारे दिमाग में कभी भी समा नहीं सकती,इसलिए तर्क इस अस्तित्व के केवल उन पहलुओं का ही विश्लेषण कर सकता हैं, जो भौतिक हैं। एक बार अगर जिज्ञासु भौतिक पहलुओं को पार कर लेता है तो उसे शिवत्व को जानने, समझने में आसानी होती है।
                                                                         
         संसार में तीन प्रकार के कार्य निरंतर चलते रहते हैं उत्पत्ति, पालन और संहार। इन्हीं तीन भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए इन्हे तीन नाम दे दिए गए हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश। विष्णु सतगुण मूर्ति हैं, ब्रह्मा रजोगुण मूर्ति और शिव तामसगुण मूर्ति हैं। 
        शिव तामसी गुणों के अधिष्ठाता हैं। तामसी गुण यानी निंदा, क्रोध, मृत्यु, अंधकार, आलस्य, भय, शोक, अहंकार, तृष्णा, वासना आदि। तामसी भोजन यानी कड़वा, विषैला, तीखा, खारा, भोजन आदि। 

         जिस अपवित्रता से, जिस दोष के कारण किसी वस्तु से घृणा की जाती है, शिव उसे धारण कर उसे भी शुभ बना देते हैं। समुद्र मंथन के समय निकले विष को धारण कर वे नीलकंठ कहलाए। जिससे जीव की मृत्यु होती है, वे उसे भी जय कर लेते हैं। तभी तो उनका नाम मृत्य़ु़ंजय है। इसी लिए कहा जाता है कि __

      भावी मेट सकहि त्रिपुरारी।

          यही शिवत्व का आधार है।
    शिव के बारे में यही कहा जा सकता है कि _

        आदि, अन्त, और मध्यमान शिव है।
        भाग्य, भी, विधाता भी, विधान शिव है। 
         जल, थल और आसमान शिव है।
      मन , चित, आत्मा है, प्राण शिव है।।

     शिव ही ब्रह्मा के रूप मे सृष्टि का निर्माण, विष्णु के रूप मे रूप मे उसका पालन_पोषण, और शंकर के रूप मे इस सृष्टि की बुराईयों का अंत करते है। इसीलिये कहा गया है कि _

    ब्रह्मा, विष्णु, सदा शिव जानत अविवेका।
    प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।।

         अंत में यही कहा जा सकता है कि भगवान शिव की आराधना निर्मल भाव से करने पर लौकिक और पारलौकिक दोनो प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं एवं दैहिक, दैविक, भौतिक, सभी तरह के संतापो का शमन होता है।

    आइए शिव वंदना के साथ इस आलेख का समापन करते हैं _

    शिव स्तुति _

    नाग काला, मुंड माला,
    मस्तक विराजे चन्द्र,
    उमा पति, काम रिपु,
    शूल _धनु धारी हैं ।
    डमरू लिए हैं कर,
    ओढ़े ब्याघ्र छाल तन,
    भोले, अविनाशी,
    अविकारी, अघहारी हैं ।।
    मारा हैै जलंधर को,
    त्रिपुरा का नाश किया,
    दानियो में औघड़ हैं,
    संत सुखकारी हैं ।
    बिगड़ी बनाने वाले,
    भक्तों के रखवाले,
    नंदी की सवारी,
    नीलकंठ असुरारी हैं ।।



    डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल "(कवि, लेखक, वक्ता, मोटीवेटर, ज्योतिषी एवं समाजसेवी_पूर्व बैंक अधिकारी)

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