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    नशा मुक्ति

    निःशब्द, है ये आज तिवारी।
    कविता पर जाऊं बलिहारी॥
    एक एक शब्द पे ध्यान करो सब कोय

    कविता नही ये मार्ग दरश है, नशा मुक्त सब होय 


    नशा मुक्त सब होय, हमहू यही कहित है।
    पिच्च पिच्च चहु ओर करव, यही देख जरित है॥

     *दिनकर* भइया समझ ना आवय काव मिलत ई खाये।
    भले छते से पानी टपकय तबउ बिमल दबाये॥


    अइसन करा अंजोर, भइया *पंकज* कीचड़ मा *कमल* खिलावा।
    २१ दिन कुच्छव छोड़ के सब आपन लक्ष्य बनावा॥

    देखित कइसे नहीं है छूटत गुटका बीडी पान?
    जियरा न निकरे एकर बिन जाने सकल जहान।


    जय हो भइया।
    एक शब्द में संदेश देना चाहूंगा कि जब नशा करने का मन करे तभी न करें बाकी तो आप लोग व्यस्त रहते ही हैं, हर समय कोई खाता भी नहीं।
    -वरुण तिवारी 

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