*धारणयोग्य बातों को अपनाना ही धर्म है - अजीत सिन्हा*
बोकारो (झारखण्ड) - धार्मिक व आध्यात्मिक चिंतक अजीत सिन्हा ने आज धर्म की विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में धारण योग्य बातों को अपनाना ही धर्म है और धारण योग्य बातें क्या हो सकती है यह मानवों को समझना भी जरूरी है, हिंसा का धर्म में कोई स्थान नहीं होता है और हिंसित कार्य निश्चित रूप से अधर्म की श्रेणी में आती है लेकिन हिंसा के आगे अपनी सिर कटने के लिये छोड़ देना, माता - बहनों की इज्जत को लूटने के लिए छोड़ देना भी धर्म नहीं है क्योंकि सनातन धर्म के अंतर्गत जिस तरह से अहिंसा परमो धर्मः बताई गई है ठीक उसी तरह से धर्म हिंसा तथैव च की भी व्याख्या मिलती है कहने का तात्पर्य यह है कि अपने सनातन धर्म की रक्षा के लिए, आत्मरक्षार्थ, परिवार, समाज और देश की जानमाल, मान-सम्मान की रक्षा के लिए शास्त्र के साथ शस्त्र उठाना भी धर्म है, सत्य को अंगीकार करना ही धर्म है, समस्याओं के समाधान हेतु तत्पर रह कर्तव्य करना भी धर्म ही है। अधर्मी को धर्म के रास्ते पर लाना भी धर्म ही है, गिरते को ऊपर उठाना, भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना भी धर्म ही है, मानवों सहित जानवरों, पशु - पक्षियों के कल्याणार्थ कार्य करना भी धर्म ही है, दुष्टों व अधर्मियों को सबक सिखाना और उन्हें सही रास्ते पर लाना भी धर्म ही है। जीवन को सुखमय बनाना और गरीबों के लिए कार्य करना भी धर्म ही है। जल - जीवन - ज्योत - प्रकृति के लिये भी कार्य करना ही धर्म ही है। अधर्म के नाश और धर्म की जय के लिए कार्य करना भी धर्म ही है। निरीह प्राणी पर जुल्म करना जिस तरह से अधर्म है ठीक उसी तरह निरीह प्राणी को बचाना भी धर्म ही है। प्राणी पर अत्याचार - जुल्म करना व उनकी हत्या कर शव में परिणत करना अधर्म है लेकिन स्वयं की रक्षा के लिए अधर्मी पर शस्त्र उठाना धर्म ही है। वेद - पुराण पाठन कर उस रास्ते पर चलने का प्रयास करना भी धर्म ही है। आशा के भाव, दया के भाव रखना जिस तरह से धर्म है ठीक उसी तरह से निराशा का भाव रखना और निर्दयी बनना अधर्म ही है। जहाँ सत्य होती है वहां धर्म होता है और जहां असत्य होती है वहां अधर्म होता है।
-अजीत सिन्हा*