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    कल्कि बन जाना है!



    पावन धरती राम - कृष्ण की, 
    याद दिलाती अस्तित्व-प्राण की, 
    वेद, वेदांग और पुराण शास्वत, 
     पथ प्रकाशित करे भागवत ।

    कली अपना रंग दिखायेगा, 
    सबको कल्कि बन जाना है, 
    राम की मर्यादा को शस्त्र बनाकर, 
    मन के रावण को दफनाना है ।

     धर्म अधर्म का फर्क़ समझ कर, 
    हरिश्चंद्र बन जाना है, 
    अर्जुन सा दृढ़ निश्चय लेकर, 
    सत्य को जीत दिलाना है ।
     
    दान धर्म का पाठ करोगे, 
    नहीं बनोगे लालच के भाई, 
     मन में होगा संतोष यदि, 
    नहीं पड़ेगी कली की परछाई।

    आओ मिलकर करे पुकार, 
    जिसमें हो मानवता का विस्तार!
    सशक्तिकरण हो जिसमें सबका,
    ऐसी रीत बनानी है। 

    मर्यादाओं में सब रहना सीखे,          
    हो सभी सम समव्यवहार,
    ऊँच-नीच सा भेद न हो , 
    हो नर - नारी का सम्मान ।

    गीता से प्रेरित होकर, 
    कल्कि ने आस दिखाई है , 
    एकत्मता की शक्ति से, 
    देखो कली ने मुह की खाई है ।
                           -लक्ष्मी शुक्ला 
                          अलीगंज सुल्तानपुर 

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