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    प्रकृति एवं परिवेश - पंकज सिंह"दिनकर"


    कलयुग की इस कलाकृति में रंग बिरंगे केश।
    नई नई तकनीक से बदल रहा परिवेश।
    सीख सदा परमेश्वर देता चुनो सत्य की राह।
    पड़ें राह कितने भी रोड़े करो नही परवाह।
    इस अद्भुत संसार में ईश्वर अद्भुत माया।
    जो ईश्वर सुमिरन करे खिलती अद्भुत काया।
    संकल्पित जीवन रहे ईश्वर दिव्य प्रभाव।
    पेड़ो से नित झुकना सीखो रखो विनम्र स्वभाव।
    सदा सत्य की राह चलो तुम होय सदा सत्कार।
    परहित सरिस धर्म नहि भाई करो सदा उपकार।
    मर्यादा में रहना सीखो बतलाते प्रभु राम।
    आपस में मिलकर करो अपने सारे काम।
    दिव्य निराली अद्भुत महिमा राम कृष्ण की धरती।
    धरती सबको ऊपर धरती सारे दुख को हरती।
    सीख निरंतर प्रकृति से मिलती खिले दिव्य हरियाली।
    "दिनकर" सम जगमग रहे साहित्यक फुलवारी।
                                                 
                   *पंकज सिंह"दिनकर"*
                  *(अर्कवंशी) लखनऊउ.प्र.*

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