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    समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण : बदलते परिदृश्य की ओर एक प्रेरणादायक दृष्टिकोण: पिंकी देवांगन

    आज हम अपनी दुनिया को पहले की तुलना में बेहतर रूप मे पाते हैं । समाज मनुष्य के स्वभाव का ही एक विकसित रूप है । मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है , और वह अकेला नहीं रह सकता । बचपन से ही व्यक्ति समाज के किसी - न - किसी अंग का सदस्य होता है । प्रारंभ में उसका संबंध परिवार तक सीमित रहता है । जैसे - जैसे वह बड़ा होता जाता है , उसके कार्यक्षेत्र व संबंधों में वृद्धि होती जाती है ! 

    साधारण शब्दो में किसी व्यक्तिगत सशक्तिकरण का अर्थ हैं , कि उस व्यक्ति को अपने जीवन के फैसले करने की स्वतंत्रता देना है या उस व्यक्ति में ऐसी क्षमताए पैदा करना जिससे वह व्यक्ति समाज में अपना सही स्थान स्थापित कर सके। 

    ■ व्यक्तिगत सशक्तिकरण का अर्थ : - 

    " कोई व्यक्तिगत समुदाय की आर्थिक , राजनीतिक , सामाजिक , शैक्षिक, लैंगिक या आध्यात्मिक शक्ति मे सुधार को व्यक्तिगत सशक्तिकरण कहा जाता है " । 


    ■ सामाजिक विकास का अर्थ : - 

    मानव समाज सदैव गतिशील व परिवर्तित रहता है । यह परिवर्तन समाज की चेतना या विकास का प्रतीक होती है । 

    प्रो . हाँब के अनुसार : - " समाज का विकास किसी वस्तु की मात्रा , व्यक्तियों की कार्यक्षमता , स्वतंत्रता , एवं सेवाभावना व परस्पर सहयोग , नैतिकता , शिक्षा तथा लोकतंत्र प्रणाली पर निर्भर करता है । 

    " प्रो . गिडिंग्ज के शब्दों में- " समाज रूचि एवं उपयोगिता के किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामूहिक रूप से प्रयत्न में लगे व्यक्तियों की चेतना को सामाजिक जागृति कहते हैं । 


    ■ समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण का महत्व व 
    सामाजिक सशक्तिकरण के परिणाम स्वरूप आने वाले बदलाव निम्नानुसार हैं , कि 


    ● सामाजिक सशक्तिकरण के परिणामस्वरूप, गरीबों के खिलाफ होने वाली सामाजिक हिंसा में कमी आई है।
    जब कोई सामाजिक रूप से सशक्त होता है, तो वह अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होता है।

    ● सामाजिक सशक्तिकरण के परिणामस्वरूप, लोगों के सही काम के चयन की संभावना अधिक होती है, जिससे बेरोजगारी और अल्प- रोजगार में कमी आती है।

    ● सामाजिक सशक्तिकरण का मूल लाभ होता है, कि इससे समाज का अधिक समग्र और समावेशी विकास होता हैं। लोगों की कमाई न केवल व्यक्तियों और उनके परिवारों को लाभान्वित करती बल्कि समाज के विकास में भी योगदान देती है।

    ● भ्रष्टाचार के मामले में सामाजिक सशक्तिकरण फायदेमंद है , क्योंकि व्यक्ति शोषित वर्ग को समझते हैं और रिश्वत देने से बचते है , जिससे भ्रष्टाचार कम होता है।

    ● गरीबी कम करने का एक तरीका सामाजिक सशक्तिकरण भी है। जब लोगों को सशक्त किया जाता है, तो वे अपने ज्ञान को अच्छे उपयोग में लाने और अपनी गरीबी को कम करने की अधिक संभावना रखते हैं, जो राष्ट्रीय समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।


     इस प्रकार से सामाजिक कार्यकर्ता ग्राहकों को उनकी जरूरतों की पहचान करने में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। और उन्हें सीखा सकते है, कि जैसे एक रोजगार एजेंसी के साथ पंजीकरण करें या स्वास्थ्य सेवाओं को खोजें जो उन्हे अपने स्वयं के अधिवक्ता बनने के लिए सशक्त बना सकें। इस स्वायत्तता की स्थापना सामाजिक कार्य की कुंजी है, जो ताकत और स्वतंत्रता बनाने का प्रयास करती है। 


    " प्रगति लोगों की चेतना को बदल सकती है ।
    और जब आप लोगों की चेतना को बदलते हैं, और फिर जो संभव है उसके बारे में उनकी जागरूकता भी बदल जाती है - यह एक पुण्य चक्र।"

    प्रकृति को "मनुष्य की जननी "कहा गया है । प्राचीन काल में मनुष्य का जीवन पर्याप्त रूप से प्रकृति से परिचालित था । धीरे - धीरे मानव बुद्धि और प्रकृति के बीच द्वन्द्व की प्रतिक्रिया से मानव समाज का वर्तमान रूप सामने आया । आज का मनुष्य भी प्रकृति का अनुगामी है , पर वह आज बहुत तर्कशील हो गया है । उसके विचार विज्ञान से प्रभावित है : - अतः वह आज प्रकृति प्रदत्त सुविधाओं का भलीभांति उपयोग कर समाज में योजनाबद्ध सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर है ।


    किसी भी देश की प्रगति का समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
    जो जीवन के प्रमुख निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। 

    ■ समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण विकास को प्रभावित करने वाले तत्व : - 


    ● मानव की तर्क शक्तिः-

    मानव , आंरभ में प्राकृतिक जीवन - यापन करता है । अपनी सुरक्षा व्यवस्था एवं प्रगति हेतु विचार एवं तर्क के आधार पर प्रयत्नशील होना पड़ाता है । इस प्रकार उसके सभी कार्य तर्क से प्रभावित होने लगता है । 
                             इस प्रकार समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण के विकास के अपेक्ष में तर्कशक्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।


    ● भौगोलिक परिस्थितियाँ : - 

    मनुष्य को दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करना पड़ता है । जिन वस्तुओं का उत्पादन , समाज एक निश्चित भूखंड में नहीं कर सकता , उन वस्तुओं को उसे देश के अन्य राज्यों या दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है । बदले में उसे अपने क्षेत्र में जीवन की आवश्यकताओं से अधिक उत्पन्न वस्तुओं को देना पड़ता है । इस प्रकार सामाजिक मनुष्यों के जीवन में विविध वस्तुओं के उत्पादन , क्रय - विक्रय और उनके एक स्थान से दूसरे स्थान पर वहन एवं आयात - निर्यात करने का महत्वपूर्ण स्थान है । 

    ● श्रमविभाजन : - 

    श्रमविभाजन का अभिप्राय " किसी वस्तु की उत्पादन की क्रियाओं को कई खंडों व उपखंडों में विभक्त करना तथा उपखंडों को विशेष व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह को उनकी रूचि व योग्यता के अनुसार सुपुर्द कर देना होता है " और श्रम विभाजन का ही यह फल है कि हम एक दिन में मनचाही वस्तुओं को विश्व के किसी भी कोने से प्राप्त करने में समर्थ हुए हैं । 


     ● धर्म , जाति और कुटु: - 

     मानव समाज के विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों में धर्म , जाति व कुटुंब प्रमुख तत्व रहे हैं । कुटुंब मानव समाज की आधारशिला एवं प्रथम पाठशाला है । धर्म व जाति की एकता ने मानव समाज की संगठित संस्थाओं में स्फूर्ति प्रदान की और धर्म - विशेष एवं जाति विशेष के व्यक्तियों के बीच शादी - विवाह , जन्म - मरण और सुख - दुख में सहयोग में वृद्धि किया है ।

    ■ समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण विकास के बाधक तत्व :

     लिंगः- 

    लिंग भेदभाव भी सामाजिक विकास में बाधक है । स्त्री - पुरूषों में असमानता का व्यवहार से सामाजिक विकास अवरूद्ध हो जाता है । धार्मिक रूढ़ियों ने उसके अधिकारों से वंचित किया जिसमें सामाजिक विकास अवरूद्ध हो गया । भारत की जनता का 50 प्रतिशत भाग महिलाओं का होने पर भी उचित कानून न होने से स्त्रियों की दशा में आशानुरूप सुधार नहीं हुआ ।

     संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार जाति , लिंग , धर्म के भेदभाव की मनाही है । राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक क्षेत्र में मदर टेरेसा , राजनीतिक क्षेत्र में इंदिरा गांधी , न्यायिक क्षेत्र में श्रीमती फातिमा बी , खेलक्षेत्र में सानिया मिर्जा , पी.टी. उषा , पुलिस सेवा में श्रीमती किरण बेदी , पर्वतारोहण में बच्छेंद्रीपाल प्रेरणा स्त्रोत हैं । 

    आज महिलाएँ दोहरी भूमिका ( घरेलू व कामकाजी ) निभाने के बाद भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है । सामाजिक रूप से आज भी स्त्री ही स्त्री की शोषणकर्ता बनी है । दहेज प्रथा के कारण जलाकर मारना , उस पर अकल्पनीय अत्याचार आज भी जारी है । 

    ■ समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण विकास के उपाय : - 

           सामाजिक चेतना हेतु निम्न उपाय आवश्यक है ।

     ● सरकार ऐसे कानून बनाये जो समस्याओं पर नियंत्रण कर सके । सभी कमजोर व पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ने के अवसर दिये जाएँ ।


    ● शिक्षा का प्रचार - प्रसार हो विशेषाधिकार समाप्त हो । 

    ● विज्ञान प्रचार - प्रसार के माध्यमों से साम्प्रदायिक सहयोग सद्भावना / संवैधानिक जाग्रति एवं सामाजिक चेतना का प्रयास किया जाए । 


    ● सभी सामाजिक संगठन अपने तरीकों से सामाजिक चेतना व सद्भाव की पृष्ठभूमि तैयार करें ।


    ● इस दिशा में सरकार द्वारा बनाये गये कानूनों का प्रचार - प्रसार समीक्षा व संशोधन सदैव होता रहे । जो साम्प्रदायिक सहयोग , सद्भावना व भाईचारा बढ़ाए ।


     ● नागरिक अपने संवैधानिक कर्तव्यों का कड़ाई से पालन करें । जैसे राष्ट्रीय = प्रतीकों का सम्मान आदि ।


    इस प्रकार से समाज में व्यक्तिगत सशक्तिकरण विकास हेतू काम किए जा सकते हैं।


    इस प्रकार, सामाजिक पहचान सिद्धांत इस दृढ़ विश्वास
    से उत्पन्न होता है, कि समूह सदस्यता लोगों को सामाजिक स्थितियों में अर्थ स्थापित करने में मदद कर सकती है। समूह सदस्यता लोगों को यह परिभाषित करने में मदद करती है, कि वे कौन हैं और यह निर्धारित करने में कि वे दूसरों से कैसे संबंधित हैं। सामाजिक पहचान सिद्धांत को एक एकीकृत सिद्धांत के रूप में विकसित किया गया था। क्युकि इसका उद्देश्य संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं और व्यवहारिक प्रेरणा को जोड़ना है ।



    व्यक्तिगत - विवरण        

    नाम - पिंकी देवांगन 
    पिता का नाम - शत्रुहन देवांगन 
    माता का नाम - कमला देवांगन
    कॉलेज - शहीद नंदकुमार पटेल विश्विद्यालय, रायगढ़ यूनिवर्सिटी ( छत्तीसगढ ) मे अध्ययनरत हु ।
    कक्षा - B.A. 2nd ईयर 
    पता - जांजगीर छत्तीसगढ 

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