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    बालकविता


              - बालकविता -
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    गोलू,भोलू,सोनू, मोनू,संग - संग सारे खेलते थे,
    गिल्ली - डंडा, धम्मा - चौकड़ी, खूब धूम मचाते थे,
    अपनी - अपनी पार्टी बनाते,अपना - अपना दान खेलते थे,
    अपनी - अपनी पारी के लिए बात - बात में झगड़ते थे।
    साथ- साथ वे खाते - पीते, संग - संग ही गाना भी गाते,
    उठा- पटक और लड़ाई - झगड़ा में भी पीछे न रहते थे,
    दूल्हे राजा बन घोड़ी चढ़ अपनी बारात निकालते थे,
    पो - पो गाड़ी की सीटी बजाते, बैंड बाजा भी बजाते थे।
    कितना सुंदर होता हम भी रहते आजीवन बच्चें,
    बोल - चाल और रहन- सहन में भी सदा रहते सच्चे,
    आओ हम सब भी मिलकर फिर से बच्चें बन जाएं,
    मीठे सपनों में में बचपन की फिर से हम भी खो जाएं।
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    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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