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    कुछ पंक्तियां

        लेख शीर्षक "कुछ_पंक्तियां" 
       
    *परिवर्तन और प्रभाव*

    _रीति रिवाज बदलते जा रहे हैं,_
    _हम क्यों इस बदलाव को_
    _अपना रहे हैं।_
     _पहनावे,दिखावे, मे हम इतने रमे जा रहे हैं_ ।
    _अपनी संस्कृति को ही भूल जा रहे हैं।_
     _धर्म जाति पर उछल रहे हैं। आखिर क्यों, हम इंसानियत भूल रहे हैं।।_

                         *ईश्वर*

    _ईश्वर का स्वरूप है,एक। परंतु रूप हैं,अनेक।दिखते नही है, वह। परंतु है वह सर्वश्रेष्ठ_
                      
       *रूपये/पैसे*

    _चंद रुपयों में तोल देते हैं, आजकल सब कुछ।_ _आखिर, क्यों हम नोटो के व्यवहार चल रहे हैं।_
    _चंद दिखावे के लिए खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाना नहीं हैं, हमे रूपयो के भाव बिकना नही हैं_

        *जिंदगी का एक लम्हा*

    _बचपन अब लगता है खूबसूरत, बीते कल को हम अच्छा कह रहे हैं।_ _अपने आज को बेहतर क्यों नहीं जी रहे हैं, छोड़ो सारी परेशानियां।_ _चलो करते हैं, एक नादानियां।_
    _जो गुजर गया उसको याद क्यों करें ,आगे लमहे इंतजार कर रहे हैं ,आओ उनके साथ चले ।।_
                      *माता_पिता*

    _जिस ईश्वर को देखे बिना मानते हो सब कुछ, वही है हमारे माता-पिता के रूप में साक्षात रूप ।।_
      
    *प्रेम*

    _प्रेम शब्द की पवित्रता को नष्ट कर रहे हैं, चंद्र मतलब के लिए इसका उपयोग कर रहे है। ऐसा यह जमाना आ गया।प्रेम ,भरोसा, दोस्ती, फिल्म जगत , हर चीज में दिखावे की आधुनिकता आ गई । वास्तविकता से दूर हो रहे है, हम इस वास्तविकता की दुनिया में दिखावा क्यों कर रहे है।_ 
                                   
     *वास्तविकता /नजरिया*

    _करते सब कुछ हम ही हैं ,दोष चार लोगों को देते हैं, दिखती नहीं है हमे खुद की गलती । दूसरो को बुरा कह देते है, वास्तविकता को पहचानो पहले खुद को निखारो।।_
                             
    *वक्त*

    _जिंदगी के हर वक्त को व्यर्थ करना नहीं है,बेकार की चीजों से मोहित हो। थोड़े समय की खुशियों के लिए जीना नहीं है, हर तस्वीर दिखाता है वक्त, वक्त के हाथों में सच्ची तस्वीरें हैं।।_

    *लक्ष्य*

    _मैं लडूंगा इन तमाम परेशानियों से, मैं झुकूंगा नहीं दो तीन या चार प्रयास से लक्ष्य तुम्हे पाना है ,अपने अस्तित्व को दिखाना है ।तुम्हें पाने के लिए हम सब कुछ कर जाएंगे ,हम सारी परेशानियों से लड़ जायेंगे।।_
                           
      *इंसानियत*

    _जिसने बनाया है ,हम सबको उसने बताया नहीं है, धर्म कोई। हमारी इंसानियत से हम नेक रहेंगे, इस धर्म में हम भी एक बनेंगे।व्यवहार हमारा सबके प्रति एक होगा, इंसानियत के धर्म में मेरा कर्तव्य भी नेक होगा।।_

        - आयुषी चौरसिया

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