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    मेरे घर भी एक दिन आ जाना

                   
    मेरे घर भी एक दिन आ जाना
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    तेरे दर पे आया हूं, ओ मां, मेरी मां, मेरे घर भी एक दिन आ जाना नौ रात्रि के दिनों में---२
    तेरे दर पे आया हूं----

    तेरा पुत अभागा हूं मैं खाली हाथ चला गया
    पान, सुपारी, ध्वजा, नारियल, कुछ भी नहीं ले आया---२
    हाथ जोड़े आया हूं, ओ मां, मेरी मां, मेरे घर भी एक दिन आ जाना नौ रात्रि के दिनों में----२
    तेरे दर पे आया हूं-----

    हलवा पूरी बनाया नहीं मैं तुझे भोग नहीं कुछ चढ़ाया
    मैं निर्धन कपूत हूं माता सूखे चने भी नहीं लाया----२
    नंगें पैर चलके आया हूं, ओ मां, मेरी मां, मेरे घर भी एक दिन आ जाना नौ रात्रि के दिनों में----२
    तेरे दर पे आया हूं------

    मेरी माता बड़ी दयालु है वो कभी निराश नहीं करती
    बिना कुछ मांगे भक्तों की खाली झोलियां मां भरती----२
    मेरी मुरादें पूरी कर दो, ओ मां, मेरी मां, मेरे घर भी एक दिन आ जाना नौ रात्रि के दिनों में----२
    तेरे दर पे आया हूं----

    सतियों का तू सत है बचाती निपुती को पुत है देती
    श्रद्धा से जो कुछ अर्पण कर दो खुशी से मां ले लेती----२
    "दुर्लभ" का दुखड़ा मिटा दो, ओ मां, मेरी मां, मेरे घर भी एक दिन आ जाना नौ रात्रि के दिनों में----२
    तेरे दर पे आया हूं, ओ मां, मेरी मां, मेरे घर भी एक दिन आ जाना नौ रात्रि के दिनों में-----२
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    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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