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    घूंघट बुरका एक से

    घूंघट बुरका एक से


    घूंघट बुरका एक से, नारी इनमें कैद।
    रोग निवारण जो करे, ढूंढो ऐसा बैद।।

    नजर दोष में पुरुष की, नारी का क्या दोष।
    पितृसत्ता है कर रही, बुरी रीत का पोष।।

    नारी घूंघट में करे, घर के सारे कार।
    दोयम दर्जा क्यों उसे, करलो सोच विचार।।

    घूंघट पिछड़ी सोच है, इसे अभी दो त्याग। 
    आओ मिलकर हम सभी, गाएं समता राग।।

    अपने घर से कीजिए, एक नई शुरुआत। 
    मेट कुप्रथा आज ही, बदलो अब हालात।।

    नर नारी सब एक से, फिर क्यों इनमें भेद।
    नारी का हक खा गए, कर थाली में छेद।।

    सिल्ला नारी को मिले, समता का अधिकार।
    नर नारी मिल कर रचें, एक नया संसार।।

                                    -विनोद सिल्ला

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